भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"परसाई जी की बात / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह= }} पैंतालिस साल पहले, जबलपु...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में
 
पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में
 
 
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए
 
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए
 
 
मैंने सुनाई अपनी कविता
 
मैंने सुनाई अपनी कविता
 
 
और पूछा
 
और पूछा
 
 
क्या इस पर ईनाम मिल सकता है
 
क्या इस पर ईनाम मिल सकता है
 
 
"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है"
 
"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है"
 
 
सुनकर मैं सन्न रह गया
 
सुनकर मैं सन्न रह गया
 
 
क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता
 
क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता
 
 
की अध्यक्षता करने जा रहे थे
 
की अध्यक्षता करने जा रहे थे
 
  
 
आज चारों तरफ़ सुनता हूँ
 
आज चारों तरफ़ सुनता हूँ
 
 
वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से
 
वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से
 
 
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
 
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
 
 
लेते हैं हाथों-हाथ
 
लेते हैं हाथों-हाथ
 
 
सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता
 
सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता
 
  
 
तो शक होने लगता है
 
तो शक होने लगता है
 
 
परसाई जी की बात पर नहीं
 
परसाई जी की बात पर नहीं
 
 
अपनी कविता पर
 
अपनी कविता पर
 +
</poem>

11:06, 5 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में
परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए
मैंने सुनाई अपनी कविता
और पूछा
क्या इस पर ईनाम मिल सकता है
"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है"
सुनकर मैं सन्न रह गया
क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता
की अध्यक्षता करने जा रहे थे

आज चारों तरफ़ सुनता हूँ
वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से
मंच और मीडिया के लकदक दोस्त
लेते हैं हाथों-हाथ
सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता

तो शक होने लगता है
परसाई जी की बात पर नहीं
अपनी कविता पर