"जीवन का राग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
('KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatDoha}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 47: | ||
उर भीगे परदेस में , करके तुझको याद। | उर भीगे परदेस में , करके तुझको याद। | ||
आँसू बनकर हो गए, नैनों में आबाद। | आँसू बनकर हो गए, नैनों में आबाद। | ||
+ | |||
</ poem> | </ poem> |
09:49, 5 जनवरी 2021 का अवतरण
36
मन से मन के तार को, देते हैं सब तोड़।
जुड़ता केवल है वही, जिसकी दुख से होड़।
37
नफ़रत का जग में कभी , होता ना विश्वास।
जिसके मन मे प्रेम है, सदा वही है खास
38
जर्जर अपनी नाव है, खण्डित है पतवार।
विश्वदेव ही मीत हैं, मेरे तारणहार।।
39
किसका किस पर वश रहा, था विधना का लेख।
तन -मन मिलकर एक थे,मिटी भेद की रेख।
40
घर के द्वारे तीन थे, टूट गए दो द्वार।
तीजे पर अब चोट है, काँपी हर दीवार ।।
41
दर्द किसे मन का कहें, टूटे सब विश्वास।
एक लौह चट्टान -सी, तुम पर है विश्वास।।
42
चन्द्रभाल के ताप को, पीकर मिटती प्यास।
अधरों को देना नहीं, अधरों से वनवास।।
43
प्रथम और अंतिम तुम्हीं, इस जीवन का राग।
जीवन के तुम ही सखा, सिखा दिया अनुराग।।
44
छोड़ -छोड़ घर चल दिए,लगा -लगाकर आग।
तुम ही केवल साथ हो, अटल रहा अनुराग।।
45
घोर घने घन साँझ के, घिरा घना अँधियार।
पथ के ध्रुव तारा तुम्हीं, तुम नौका पतवार।
46
जो रिश्ते थे लोभ के,वे टूटे हर बार।
भरी भीड़ में खो गए , जो बनते थे यार।
47
दुख उनके मैं ओढ़ लूँ, जो हैं मन के पास।
बस इतनी सी आज है, प्रभु तुझसे अरदास।
48
दे औरों को पीर जो, छीन रहे मुस्कान।
बाट देखता काल है, लिये दण्ड का दान।
49
उर भीगे परदेस में , करके तुझको याद।
आँसू बनकर हो गए, नैनों में आबाद।
</ poem>