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+ | तारे तालाब में झील में उतर नींद लेते हैं | ||
+ | रात जागती है उनींदी | ||
+ | एक मछली हिलकर क़रीब लाती है | ||
+ | दो तारों को | ||
+ | रात के परिश्रम का पसीना है ओस | ||
+ | कभी बासी नहीं होती | ||
+ | इसे चखने सूरज कल भी | ||
+ | समय से निकलेगा | ||
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+ | धुंध है धरती का सूरज से अबोला | ||
+ | वह हटा ही देगा बीच में पसरा पर्दा | ||
+ | आखिर तो चुप्पी को टूटना ही है | ||
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+ | शहद है चुम्बनों का संचय | ||
+ | हर बूँद भीतर तक मीठी | ||
+ | जीवन का शहद है प्रेम | ||
+ | अधूरा, मीठा! | ||
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00:27, 3 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
एक अधूरे छूटे संवाद में ठहरी हुई बातें हैं
सारी आँधियाँ
जो कहना था वो कभी नहीं आता होठों तक
अधूरा छूटा स्वप्न भूल जाता है सही रास्ता
भटकने को टूटते हैं सारे झरने
जीने की इच्छा उन्हें नदी बनाती है.
तारे तालाब में झील में उतर नींद लेते हैं
रात जागती है उनींदी
एक मछली हिलकर क़रीब लाती है
दो तारों को
रात के परिश्रम का पसीना है ओस
कभी बासी नहीं होती
इसे चखने सूरज कल भी
समय से निकलेगा
धुंध है धरती का सूरज से अबोला
वह हटा ही देगा बीच में पसरा पर्दा
आखिर तो चुप्पी को टूटना ही है
शहद है चुम्बनों का संचय
हर बूँद भीतर तक मीठी
जीवन का शहद है प्रेम
अधूरा, मीठा!