"मन-अम्बर / अनिता मंडा" के अवतरणों में अंतर
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+ | फिर से ख़ाक होगा। | ||
+ | दिल के छाले | ||
+ | सिसकेंगे फिर से | ||
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+ | पावस ऋतु | ||
+ | झरा श्याम आँचल | ||
+ | धुल गए शिक़वे। | ||
+ | खुले नभ में | ||
+ | सतरंगा आँचल | ||
+ | उग गए बिरवे। | ||
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+ | तेरी यादों के | ||
+ | पहरे मन पर | ||
+ | धुंधलाते नहीं हैं। | ||
+ | पलकों तले | ||
+ | सरकते हैं ख़्वाब | ||
+ | अकुलाते नहीं हैं। | ||
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+ | नदी के तीर | ||
+ | साथ-साथ बहते | ||
+ | अजनबी रहते। | ||
+ | मन की पीर | ||
+ | किसे हम कहते | ||
+ | चुप रह सहते। | ||
+ | 6. | ||
+ | हल्दी कुंकुम | ||
+ | रंगे हैं हमतुम | ||
+ | एक-दूजे के रंग। | ||
+ | कोरा है मन | ||
+ | लिख दिया अर्पण | ||
+ | छूटे न यह रंग। | ||
+ | 7. | ||
+ | भोर ने जब | ||
+ | उठाई हैं पलकें | ||
+ | हो गई दुपहरी | ||
+ | बदला रंग | ||
+ | चमचमाने लगी | ||
+ | सुनहरी चूनरी। | ||
+ | 8 | ||
+ | हमसफ़र | ||
+ | करवां है ग़मों का | ||
+ | शुक्रिया अपनों का | ||
+ | मन में मेरे | ||
+ | नहीं अकेलापन | ||
+ | मेला है सपनों का। | ||
+ | 9 | ||
+ | बढ़ती आएँ | ||
+ | सागर की लहरें | ||
+ | किरणों से मिलने, | ||
+ | भूरे से वस्त्र | ||
+ | रख दिए धुलने | ||
+ | भोर ने उतारके। | ||
+ | 10 | ||
+ | भोर है आई | ||
+ | पूरब में लालिमा | ||
+ | किरणों ने फैलाई | ||
+ | धीरे से हिली | ||
+ | ओस नहाई कली | ||
+ | मँडराई तितली। | ||
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10:04, 3 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
1.
बिछी हुई है
रुपहली चादर
झील के तन पर।
प्यार की ऊष्मा
छाई कण-कण पर
आओ हे दिनकर !
2.
सुलग उठा
चौदहवीं का चाँद
फिर से ख़ाक होगा।
दिल के छाले
सिसकेंगे फिर से
कब ये पाक होगा।
3.
पावस ऋतु
झरा श्याम आँचल
धुल गए शिक़वे।
खुले नभ में
सतरंगा आँचल
उग गए बिरवे।
4.
तेरी यादों के
पहरे मन पर
धुंधलाते नहीं हैं।
पलकों तले
सरकते हैं ख़्वाब
अकुलाते नहीं हैं।
5.
नदी के तीर
साथ-साथ बहते
अजनबी रहते।
मन की पीर
किसे हम कहते
चुप रह सहते।
6.
हल्दी कुंकुम
रंगे हैं हमतुम
एक-दूजे के रंग।
कोरा है मन
लिख दिया अर्पण
छूटे न यह रंग।
7.
भोर ने जब
उठाई हैं पलकें
हो गई दुपहरी
बदला रंग
चमचमाने लगी
सुनहरी चूनरी।
8
हमसफ़र
करवां है ग़मों का
शुक्रिया अपनों का
मन में मेरे
नहीं अकेलापन
मेला है सपनों का।
9
बढ़ती आएँ
सागर की लहरें
किरणों से मिलने,
भूरे से वस्त्र
रख दिए धुलने
भोर ने उतारके।
10
भोर है आई
पूरब में लालिमा
किरणों ने फैलाई
धीरे से हिली
ओस नहाई कली
मँडराई तितली।