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+ | आज अकेला। | ||
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+ | छौ पग्छियों कु डेरु | ||
+ | आज यकुलि | ||
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+ | चाँद ने छुआ | ||
+ | लहर उठ आई | ||
+ | भीगी लजाई। | ||
+ | जून न छुई | ||
+ | लैर उठ्ठी कैं ऐ गि | ||
+ | भिजे सरमै | ||
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+ | साँझ बहाए | ||
+ | अँजुरी भर दर्द | ||
+ | निशा पी जाए।1 | ||
+ | रूम्क बगौन्दि | ||
+ | अंजुळ भोरी पिड़ा | ||
+ | रात पी जान्दी | ||
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+ | सूना आँगन | ||
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+ | नीम अकेला। | ||
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+ | सुन्न ह्वे चौक | ||
+ | उड़ि गैनी पगछी | ||
+ | नीम यकुलि | ||
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+ | आहट बिन | ||
+ | नव पाहुन आया | ||
+ | खिली बगिया। | ||
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+ | सबद बिना | ||
+ | नैयूँ पौणू ऐ ग्याई | ||
+ | खिली सग्वाड़ू | ||
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+ | पात पुराने | ||
+ | कहें एक कहानी- | ||
+ | बीती जवानी! | ||
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+ | पत्ता पुरणा | ||
+ | सुणौणा एक कत्था | ||
+ | बिति गे ज्वानी | ||
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+ | सजा जुगनू | ||
+ | उलझी लटों पर | ||
+ | निशा दमकी। | ||
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+ | सजी जोगींण | ||
+ | उलझे लटुल्यों माँ | ||
+ | रात चमकीं । | ||
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+ | झील-दर्पन | ||
+ | देख रही घटाएँ | ||
+ | केश फैलाएँ। | ||
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+ | तालौ कु ऐनाँ | ||
+ | देखणि घटा इन | ||
+ | लटुली फुफ्तै | ||
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+ | सर्द हवाएँ | ||
+ | गुम हुआ सूरज | ||
+ | आ मिल ढूँढें। | ||
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+ | ठण्डी हवा छ | ||
+ | हर्च्युं च सुर्ज दा बि | ||
+ | औ मिलि ख्वजाँ | ||
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+ | धुआँ दैत्य-सा | ||
+ | पसरा हर ओर | ||
+ | लीलता साँसें। | ||
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+ | धुआँ दैंत सि | ||
+ | पसरि चौतरफा | ||
+ | खाणु च साँस | ||
+ | 11 | ||
+ | ओस की बूँद | ||
+ | बस इक प्यारा पल | ||
+ | यही जीवन। | ||
+ | |||
+ | ओंसै कि बुन्द | ||
+ | दा एक प्यारी घड़ी | ||
+ | यु ई च ज्यूँण | ||
+ | 12 | ||
+ | देख दर्पण | ||
+ | आक्रांत हुआ मन | ||
+ | बीता यौवन। | ||
+ | |||
+ | देखि कि ऐंनाँ | ||
+ | बिचैन ह्वे गे मन | ||
+ | बिति गे ज्वानी | ||
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14:07, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
उदास तरु
था पाखियों का डेरा
आज अकेला।
उदास्यूँ डाळु
छौ पग्छियों कु डेरु
आज यकुलि
2
चाँद ने छुआ
लहर उठ आई
भीगी लजाई।
जून न छुई
लैर उठ्ठी कैं ऐ गि
भिजे सरमै
3
साँझ बहाए
अँजुरी भर दर्द
निशा पी जाए।1
रूम्क बगौन्दि
अंजुळ भोरी पिड़ा
रात पी जान्दी
4
सूना आँगन
उड़ गए हैं पंछी
नीम अकेला।
सुन्न ह्वे चौक
उड़ि गैनी पगछी
नीम यकुलि
5
आहट बिन
नव पाहुन आया
खिली बगिया।
सबद बिना
नैयूँ पौणू ऐ ग्याई
खिली सग्वाड़ू
6
पात पुराने
कहें एक कहानी-
बीती जवानी!
पत्ता पुरणा
सुणौणा एक कत्था
बिति गे ज्वानी
7
सजा जुगनू
उलझी लटों पर
निशा दमकी।
सजी जोगींण
उलझे लटुल्यों माँ
रात चमकीं ।
8
झील-दर्पन
देख रही घटाएँ
केश फैलाएँ।
तालौ कु ऐनाँ
देखणि घटा इन
लटुली फुफ्तै
9
सर्द हवाएँ
गुम हुआ सूरज
आ मिल ढूँढें।
ठण्डी हवा छ
हर्च्युं च सुर्ज दा बि
औ मिलि ख्वजाँ
10
धुआँ दैत्य-सा
पसरा हर ओर
लीलता साँसें।
धुआँ दैंत सि
पसरि चौतरफा
खाणु च साँस
11
ओस की बूँद
बस इक प्यारा पल
यही जीवन।
ओंसै कि बुन्द
दा एक प्यारी घड़ी
यु ई च ज्यूँण
12
देख दर्पण
आक्रांत हुआ मन
बीता यौवन।
देखि कि ऐंनाँ
बिचैन ह्वे गे मन
बिति गे ज्वानी
-0-