"एक अदद शर्वरी / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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+ | चिपकने के लिए सुरक्षित है ! | ||
+ | पिता होना या कहलाना | ||
+ | बकवास या जुर्म जैसी कोई बात है शायद ! | ||
+ | शताब्दियों से एक साँप | ||
+ | बाम्बी में सिर छिपाए, | ||
+ | लाठियों की चोट सहकर ऐंठ रहा है ! | ||
+ | और यह शर्वरी | ||
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+ | किसी बुद्ध — ईसा — गाँधी — नेहरू — कैनेडी | ||
+ | लेनिन — हिटलर — मुसोलनी | ||
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+ | दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं ! | ||
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23:53, 25 अगस्त 2021 के समय का अवतरण
एक कहानी का प्लाट !
शिल्प — प्रेम — संस्कार जैसे
ढेर सारे शब्दों की तरह
एक और बे-मानी शब्द !
बात कहीं से भी शुरू की जाए
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कार — चमूनम — रेज़र — राजकुमारी
सोसायटी गर्ल — फ़्लर्ट —जादूगरनी या परी !
अथवा यों कहा जाए —
एक अदद शर्वरी !
कोई फ़र्क नहीं पड़ता ! नहीं पड़ता !
किसी ख़ास शीर्षक से
कई सफ़ेद पन्नों पर
सरपट दौड़ता —
आँखों से देखता,
कानों से सुनता,
एक दिलचस्प-सा मतलब !
मतलब : गोश्त के
किसी काफ़ी चुस्त-दुरुस्त लोथड़े पर
कहीं बीच में
बड़ी सफ़ाई के साथ
एक बार चाकू फेर दिया गया है !
रोशनदान से आती धूप की सीध में
छलकने को प्रस्तुत
किसी नन्हें बच्चे की उँगलियों का रंग !
उड़ाने भरने को
बिल्कुल तैयार
एक जोड़ा कबूतर !
सब कुछ अलग-अलग
केवल शर्वरी का !
शर्वरी के लिए
हू-ब-हू ऐसी ही !
शर्वरी ! शर्वरी !
कि इस नाम को दुहराते-दुहराते
ज़ोरों से
पुकारने की तबियत हो जाए
और
अपनी ओर उठी बहुत सारी आँखों को देखकर
हैरत या शर्मिन्दगी का अहसास तक न हो !
दरअस्ल :
पतली सुनहरी कमानी का
चश्मा लगाए
एक मत्स्यकन्या : विज्ञापन-प्रतिनिधि !
हिरोइन बनने के इरादे से
घर से भागी हुई एक लड़की !
एकस्ट्रा — आर्डिनरी एकदम !
दो ठोस मांसपेशियों वाली पहाड़ी जाँघें !
यूनिवर्सिटी-हॉस्टल के लॉन में
चहलक़दमी करती
कमसिन-सी सेठज़ादी !
कुल मिलाकर महज एक अदद शर्वरी !
सड़कों का चिपचिपाहटजीवी शोर !
लैम्पपोस्टों से लिपटी
मायूस ख़ामोशी !
मकानों की छतों पर
घुटनों में मुँह छिपाकर
बैठा सन्नाटा !
मोमबत्तियों और उँगलियों की सीमा से परे
एक फटा हुआ ब्लैडर : बिना बच्चेदानी का पेट !
यह सब भी सिर्फ़ एक अदद शर्वरी !
कई व्यक्ति स्वल्पों और स्तरों में बँटी : मिस !
ऑफ़िस के टाइप राइटर से जूझती : स्टैनो !
टेलिफ़ोन के नम्बरों से माथा-पच्ची करती : रिसैप्सनिस्ट !
शराब के पैग में ढलती
बदबूदार डकारों को पीकर —
नक़ली-मुलायम मुसकराहट बिखेरती —
ठण्डे दूध की धार पर बहती
एक जवान औरत !
आँखॊं में क्षोभ —
होठों पर सूजन —
पीठ पर नाख़ूनों के निशान
और
गालों पर दाँतों की चुभन :
एक माँसल जरीसाज़ी का नमूना !
एक छेद : जिसमेंं
आंशिक रूप से प्रवेश कर
रात भर रिसी है एक इच्छा !
और सुबह
तकिये के गिलाफ़
और बिस्तर की चादर पर
यहाँ-वहाँ — जहाँ-तहाँ
टपक गई — चू गई !
और अब
टूटते-सिकुड़ते माथे
और पेट पर फिरते मजबूर हाथ के सिवा
कहीं कुछ भी नहीं है !
बाहर, गली में खेलते बच्चों के पिता
या तो हैं ही नहीं —
या फिर उनका नाम
किसी ख़ास पोर्टफ़ोलियो के साथ
चिपकने के लिए सुरक्षित है !
पिता होना या कहलाना
बकवास या जुर्म जैसी कोई बात है शायद !
शताब्दियों से एक साँप
बाम्बी में सिर छिपाए,
लाठियों की चोट सहकर ऐंठ रहा है !
और यह शर्वरी
जिसका
किसी बुद्ध — ईसा — गाँधी — नेहरू — कैनेडी
लेनिन — हिटलर — मुसोलनी
मार्क्स — अरस्तू — प्लेटो से
दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं !
1966