"लब्धे बौलाहा / लक्ष्मीनन्दन चालिसे" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मामूली घर बारि खेत उसमा खेती किसानी गरी | |
− | + | निर्वाहा पनि येन केन रितले चल्थ्यो, न क्यै नोकरी | |
− | + | व्यापारादि थिए, थियो न घरमा प्राचीन श्रीसम्पति | |
− | + | उब्जन्थ्यो जति खान लाउनसिबा बच्तैनथ्यो एक्रती ।। | |
२ | २ | ||
− | + | कर्जा केहि थियो, थियो अति कडा साहू, बढी ब्याजमा | |
− | + | गर्थ्यो शख्त, शकेन तिनं थपियो सोही पनी साउँमा | |
− | + | डोको बढ्न गयो, धितो पकड़ियो, आखीरमा नालिस | |
− | + | अड्डामा दरियो, थिएन अरु क्वै वारिस दिने मानिस ।। | |
३ | ३ | ||
− | + | लेखाई प्रतिवादि बल्ल दिइयो मुद्दा भयो दायर | |
− | + | पर्चा तारिखको मिल्यो, मन भयो सुर्ताहरूको घर | |
− | + | साक्षी ग्वाहि सिपाहि म्यादहरुका निम्ती उती खर्च भो | |
− | + | ज्यालैको भर खेतिको हुन गई कूतै नपुग्ने भयो ।। | |
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− | + | पानी घाम बतास ठण्डिहरुको पर्वाह कत्ती नली | |
− | + | नाघ्दै साँझ बिहान रात नभनी खोला र नाला थली | |
− | + | अड्डा धाउनु बोकि सामल, यता खानू छ सत्तू फुका | |
− | + | टल्सिङ्को छ उता शिकिस्ति, घरमा फाटीरहेछन् लुगा ।। | |
५ | ५ | ||
− | + | छन् मुद्दा अनगिन्ति हेर्नु कसको अड्डा छ सारै पर | |
− | + | धायो धाउनसम्म आजित भयो लड्दै बितीगो घर | |
− | जो | + | गर्थे हार गुहार जो तिनि पनी देखेर नङ्गा हटे |
− | + | हुन्थे जो व्यवहार आफस छिमेक मा पनी ती घटे ।। | |
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− | + | मुद्दा चम्किरहेछ हुन्छ अब के भन्ने छ भारी डर | |
− | + | यस्तैमा थलिएर कालि घरमा बस्ने परीगो कर | |
− | + | गयो तारिख एकतर्फि हुनगै मुद्दा फसेला भयो | |
− | + | लाग्यो दण्ड बिगो प्रशस्त उसले सातो उडाईदियो । | |
− | ७ | + | ७ |
− | + | जूँगा ताउ दिँदै थिचेँ अब भनी उर्लन्छ बैरी उता | |
− | + | मुद्दा फेरि जनाइ लड्न कहिल्यै चल्दैन आफ्नो बुता | |
− | + | रुन्छन भोक र प्यासले धुरधुरू जाहान सारा दिन | |
− | + | चारा के गरि जुट्छ दिन्छ कसले जेथा नदेखी ऋण ।। | |
८ | ८ | ||
− | + | बाली नालि लटेरले लुटि लग्यो गाँठी सबै रित्तियो | |
− | + | छोरा छोरि बढी विवाह गरने बेला पानी भेट्कियो | |
− | + | थामोस् त्यो घरबाट के गरि कहाँ फ्याँकोस् बिसाओस् कहाँ | |
− | + | शून्यै देख्छ जता गए पनि उ ता सुझ्दैन क्यै मन्महाँ ।। | |
− | ९ | + | ९ |
− | + | निर्धो हाय अभागि तुच्छ बिचरो काहाँ गई के गरोस् | |
− | + | हालोस् फाल मरोस् डुबोस् कि रहमा या अग्निमा होमियोस् | |
− | + | सड्क्यो आखिर भै असह्य मगजै धोती न टोपी भई | |
− | + | ऐले मार्गमहाँ खडा छ बहुला 'लब्धे' भनेको उही ।। | |
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− | + | उद्योग, ३।३, १५ आषाढ १६६५ | |
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18:19, 12 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
१
मामूली घर बारि खेत उसमा खेती किसानी गरी
निर्वाहा पनि येन केन रितले चल्थ्यो, न क्यै नोकरी
व्यापारादि थिए, थियो न घरमा प्राचीन श्रीसम्पति
उब्जन्थ्यो जति खान लाउनसिबा बच्तैनथ्यो एक्रती ।।
२
कर्जा केहि थियो, थियो अति कडा साहू, बढी ब्याजमा
गर्थ्यो शख्त, शकेन तिनं थपियो सोही पनी साउँमा
डोको बढ्न गयो, धितो पकड़ियो, आखीरमा नालिस
अड्डामा दरियो, थिएन अरु क्वै वारिस दिने मानिस ।।
३
लेखाई प्रतिवादि बल्ल दिइयो मुद्दा भयो दायर
पर्चा तारिखको मिल्यो, मन भयो सुर्ताहरूको घर
साक्षी ग्वाहि सिपाहि म्यादहरुका निम्ती उती खर्च भो
ज्यालैको भर खेतिको हुन गई कूतै नपुग्ने भयो ।।
४
पानी घाम बतास ठण्डिहरुको पर्वाह कत्ती नली
नाघ्दै साँझ बिहान रात नभनी खोला र नाला थली
अड्डा धाउनु बोकि सामल, यता खानू छ सत्तू फुका
टल्सिङ्को छ उता शिकिस्ति, घरमा फाटीरहेछन् लुगा ।।
५
छन् मुद्दा अनगिन्ति हेर्नु कसको अड्डा छ सारै पर
धायो धाउनसम्म आजित भयो लड्दै बितीगो घर
गर्थे हार गुहार जो तिनि पनी देखेर नङ्गा हटे
हुन्थे जो व्यवहार आफस छिमेक मा पनी ती घटे ।।
६
मुद्दा चम्किरहेछ हुन्छ अब के भन्ने छ भारी डर
यस्तैमा थलिएर कालि घरमा बस्ने परीगो कर
गयो तारिख एकतर्फि हुनगै मुद्दा फसेला भयो
लाग्यो दण्ड बिगो प्रशस्त उसले सातो उडाईदियो ।
७
जूँगा ताउ दिँदै थिचेँ अब भनी उर्लन्छ बैरी उता
मुद्दा फेरि जनाइ लड्न कहिल्यै चल्दैन आफ्नो बुता
रुन्छन भोक र प्यासले धुरधुरू जाहान सारा दिन
चारा के गरि जुट्छ दिन्छ कसले जेथा नदेखी ऋण ।।
८
बाली नालि लटेरले लुटि लग्यो गाँठी सबै रित्तियो
छोरा छोरि बढी विवाह गरने बेला पानी भेट्कियो
थामोस् त्यो घरबाट के गरि कहाँ फ्याँकोस् बिसाओस् कहाँ
शून्यै देख्छ जता गए पनि उ ता सुझ्दैन क्यै मन्महाँ ।।
९
निर्धो हाय अभागि तुच्छ बिचरो काहाँ गई के गरोस्
हालोस् फाल मरोस् डुबोस् कि रहमा या अग्निमा होमियोस्
सड्क्यो आखिर भै असह्य मगजै धोती न टोपी भई
ऐले मार्गमहाँ खडा छ बहुला 'लब्धे' भनेको उही ।।
......................................
उद्योग, ३।३, १५ आषाढ १६६५