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"सोनेट-1-3 / विनीत मोहन औदिच्य" के अवतरणों में अंतर

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'''1.उद्विग्न आकाश'''
 
'''1.उद्विग्न आकाश'''
निरंतर गोलियों की बौछार, वीभत्स ढ़ंग से मारे जाते लोग
 
रक्त रंजित पड़े असंख्य शव,कहीं कराहते मनुज पीड़ा भोग
 
बर्बरता की सीमाओं को लांघकर, आतंकी ठहाके लगाते
 
कहीं भूखे प्यासे गिद्ध चीलों के समूह आकाश में मंडराते।
 
  
कारखानों का धुँआ, जलती पराली, वाहनों का निरंतर शोर
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निरन्तर गोलियों की बौछार, वीभत्स ढंग से मारे जाते लोग
गंदगी के ढे़र से उठती दुर्गंध, शीत के कुहासे से भरी भोर
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रक्तरंजित पड़े असंख्य शव, कहीं कराहते मनुज पीड़ा भोग
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बर्बरता की सीमाओं को लाँघकर, आतँकी ठहाके लगाते
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कहीं भूखे - प्यासे गिद्ध चीलों के समूह आकाश में मण्डराते ।
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कारख़ानों का धुआँ, जलती पराली, वाहनों का निरन्तर शोर
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गन्दगी के ढेर से उठती दुर्गन्ध, शीत के कुहासे से भरी भोर
 
दम घोंट देता है अनवरत वातावरण में बढ़ता हुआ प्रदूषण
 
दम घोंट देता है अनवरत वातावरण में बढ़ता हुआ प्रदूषण
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से खोता धरा का हरित आभूषण।
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वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से खोता धरा का हरित आभूषण ।
  
स्वार्थ के वशीभूत लालच की चौखट पर दम तोड़ते संबंध
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स्वार्थ के वशीभूत लालच की चौखट पर दम तोड़ते सम्बन्ध
सहनशीलता के अभाव में विफल होते प्रीति के अनुबंध
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सहनशीलता के अभाव में विफल होते प्रीति के अनुबन्ध
 
अर्थ और स्वातंत्र्य की प्रधानता में समाज का बिखराव
 
अर्थ और स्वातंत्र्य की प्रधानता में समाज का बिखराव
भौतिक विलासिता की चाह का समन्वय से होता टकराव।
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भौतिक विलासिता की चाह का समन्वय से होता टकराव ।
  
 
वेदना की चादर ओढ़े मानव, स्वयं के एकाकीपन से जूझता
 
वेदना की चादर ओढ़े मानव, स्वयं के एकाकीपन से जूझता
मानसिक यंत्रणा से त्रस्त, उद्विग्न आकाश अश्रुओं में भींगता।।
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मानसिक यंत्रणा से त्रस्त, उद्विग्न आकाश अश्रुओं में भींगता ।।
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  '''2. ग्राम्य जीवन'''
 
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नीले अंबर के आंगन में भोर का सूरज उगता
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नीले अम्बर के आँगन में भोर का सूरज उगता
 
सोकर उठ जाने को मानो सारे जग से कहता
 
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जल भरने घट लेकर जातीं ललनायें पनघट पर
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जल भरने घट लेकर जातीं ललनाएँ पनघट पर
 
करने को स्नान जमा हों नारी सब सरि तट पर
 
करने को स्नान जमा हों नारी सब सरि तट पर
  
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हरीतिमा की चादर ओढ़े वसुन्धरा इठलाती
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खेतों की ये मेड़ भी देखो इधर - उधर बल खाती
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सर्पीले लम्बे रस्ते पर पसरी बूढ़े बरगद की छाया
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स्वेद बिन्दु ,श्रम के चमकाएँ क्लान्त कृषक की काया ।
  
हरीतिमा की चादर ओढ़े वसुंधरा इठलाती
 
खेतों की ये मेड़ भी देखो इधर उधर बल खाती
 
सर्पीले लंबे रस्ते पर पसरी बूढ़े बरगद की छाया
 
स्वेद बिन्दु ,श्रम के चमकायें क्लांत कृषक की काया।
 
  
 
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फूली सरसों, शीत पवन से मन्द - मन्द सी लहराए
फूली सरसों शीत पवन से मंद मंद सी लहराये
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चारा खाकर गौ माता भी बैठ चैन से पगुराए
चारा खाकर गौ माता भी बैठ चैन से पगुराये
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मधुर मधुर घण्टी की ध्वनि नीरवता में स्वर भरती
मधुर मधुर घंटी की ध्वनि नीरवता में स्वर भरती
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पेड़ों के झुरमुट में छिपकर कोयल कलरव करती
 
पेड़ों के झुरमुट में छिपकर कोयल कलरव करती
  
 
प्रेम दया करुणा से सुरभित, रहता जीवन ग्राम्य
 
प्रेम दया करुणा से सुरभित, रहता जीवन ग्राम्य
जीना- मरना इस माटी में, एकमात्र हो काम्य।।
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जीना-मरना इस माटी में, एकमात्र हो काम्य ।।
'''3.भरत'''
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कैकयीनंदन भरत रहे हैं रघुनंदन के प्रिय लघु भ्राता
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आदर्शों की खान कहाते और धर्म के अनुपम ज्ञाता
 
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है आचरण पुनीत, अनुकरण योग्य, सहज सुखदायक
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है आचरण पुनीत, अनुकरण योग्य, सहज सुखदायक
सन्यासी सी चित्तवृत्ति धरते कर में रखते धनु सायक।
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जब साम्राज्ञी माता ने उनको राजतिलक के लिए मनाया
 
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कपट पूर्ण व्यवहार भरत के मन को तनिक न भाया
 
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दशरथ पिता मरण का कारण स्वयं को उसने माना
 
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व्यथित कर गया राम सिया का लक्ष्मण संग वन जाना।
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राज्य अयोध्या श्री राम को देने जब चित्रकूट प्रस्थान किया
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गुरु वशिष्ठ, माताओं, नगर वासियों ने अति सम्मान दिया
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प्रभु की आज्ञा कर शिरोधार्य वह चरण पादुका ले आये
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जा नंदीग्राम में वास किया और भक्त शिरोमणि कहलाये।
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त्यागा सभी राज्य का वैभव, अपनाया साधक का जीवन।
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राज्य अयोध्या श्रीराम को देने जब चित्रकूट प्रस्थान किया
अपने प्रभु श्रीराम चरण में, किया समर्पित तन, मन, धन।।
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प्रभु की आज्ञा कर शिरोधार्य वह चरण पादुका ले आए
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जा नंदीग्राम में वास किया और भक्त शिरोमणि कहलाए ।
  
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त्यागा सभी राज्य का वैभव, अपनाया साधक का जीवन ।
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अपने प्रभु श्रीराम चरण में, किया समर्पित तन, मन, धन ।।
 
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17:32, 28 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण

1.उद्विग्न आकाश

निरन्तर गोलियों की बौछार, वीभत्स ढंग से मारे जाते लोग
रक्तरंजित पड़े असंख्य शव, कहीं कराहते मनुज पीड़ा भोग
बर्बरता की सीमाओं को लाँघकर, आतँकी ठहाके लगाते
कहीं भूखे - प्यासे गिद्ध चीलों के समूह आकाश में मण्डराते ।

कारख़ानों का धुआँ, जलती पराली, वाहनों का निरन्तर शोर
गन्दगी के ढेर से उठती दुर्गन्ध, शीत के कुहासे से भरी भोर
दम घोंट देता है अनवरत वातावरण में बढ़ता हुआ प्रदूषण
वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से खोता धरा का हरित आभूषण ।

स्वार्थ के वशीभूत लालच की चौखट पर दम तोड़ते सम्बन्ध
सहनशीलता के अभाव में विफल होते प्रीति के अनुबन्ध
अर्थ और स्वातंत्र्य की प्रधानता में समाज का बिखराव
भौतिक विलासिता की चाह का समन्वय से होता टकराव ।

वेदना की चादर ओढ़े मानव, स्वयं के एकाकीपन से जूझता
मानसिक यंत्रणा से त्रस्त, उद्विग्न आकाश अश्रुओं में भींगता ।।

 2. ग्राम्य जीवन

नीले अम्बर के आँगन में भोर का सूरज उगता
सोकर उठ जाने को मानो सारे जग से कहता
जल भरने घट लेकर जातीं ललनाएँ पनघट पर
करने को स्नान जमा हों नारी सब सरि तट पर

हरीतिमा की चादर ओढ़े वसुन्धरा इठलाती
खेतों की ये मेड़ भी देखो इधर - उधर बल खाती
सर्पीले लम्बे रस्ते पर पसरी बूढ़े बरगद की छाया
स्वेद बिन्दु ,श्रम के चमकाएँ क्लान्त कृषक की काया ।


फूली सरसों, शीत पवन से मन्द - मन्द सी लहराए
चारा खाकर गौ माता भी बैठ चैन से पगुराए
मधुर मधुर घण्टी की ध्वनि नीरवता में स्वर भरती
पेड़ों के झुरमुट में छिपकर कोयल कलरव करती

प्रेम दया करुणा से सुरभित, रहता जीवन ग्राम्य
जीना-मरना इस माटी में, एकमात्र हो काम्य ।।

3. भरत

कैकयीनन्दन भरत रहे हैं रघुनन्दन के प्रिय लघु भ्राता
आदर्शों की खान कहाते और धर्म के अनुपम ज्ञाता
है आचरण पुनीत, अनुकरण योग्य, सहज सुखदायक
संन्यासी सी चित्तवृत्ति धरते कर में रखते धनु सायक ।

जब साम्राज्ञी माता ने उनको राजतिलक के लिए मनाया
कपट पूर्ण व्यवहार भरत के मन को तनिक न भाया
दशरथ पिता मरण का कारण स्वयं को उसने माना
व्यथित कर गया राम सिया का लक्ष्मण संग वन जाना ।

राज्य अयोध्या श्रीराम को देने जब चित्रकूट प्रस्थान किया
गुरु वशिष्ठ, माताओं, नगरवासियों ने अति सम्मान दिया
प्रभु की आज्ञा कर शिरोधार्य वह चरण पादुका ले आए
जा नंदीग्राम में वास किया और भक्त शिरोमणि कहलाए ।

त्यागा सभी राज्य का वैभव, अपनाया साधक का जीवन ।
अपने प्रभु श्रीराम चरण में, किया समर्पित तन, मन, धन ।।