"द्वितीय अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
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− | + | युक्तेन मनसा वयं देवस्य सवितुः सवे।<br> | |
− | + | सुवर्गेयाय शक्त्या॥२॥<br> | |
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− | + | कहीं मूल कारण काल को कहीं प्रवृति को कारण कहा,<br> | |
− | + | कहीं कर्म कारण तो कहीं, भवितव्य को माना महा,<br> | |
− | + | पाँचों महाभूतों को कारण, तो कहीं जीवात्मा,<br> | |
− | + | पर मूल कारण और कुछ, जिसे जानता परमात्मा। [ २ ]<br><br> | |
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− | + | युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।<br> | |
− | + | वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः॥४॥<br> | |
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− | + | यह विश्व रूप है चक्र उसका , एक नेमि केन्द्र है,<br> | |
− | + | सोलह सिरों व् तीन घेरों, पचास अरों में विकेन्द्र है।<br> | |
− | + | छः अष्टको बहु रूपमय और त्रिगुण आवृत प्रकृति है,<br> | |
− | + | इस विश्व चक्र में सम अरों, अंतःकरण की प्रवृति है। [ ४ ]<br><br> | |
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− | + | अग्निर्यत्राभिमथ्यते वायुर्यत्राधिरुध्यते।<br> | |
− | + | सोमो यत्रातिरिच्यते तत्र सञ्जायते मनः॥६॥<br> | |
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− | + | त्रिरुन्नतं स्थाप्य समं शरीरं हृदीन्द्रियाणि मनसा सन्निवेश्य।<br> | |
− | + | ब्रह्मोडुपेन प्रतरेत विद्वान् स्रोतांसि सर्वाणि भयानकानि॥८॥<br> | |
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− | + | प्राणान् प्रपीड्येह संयुक्तचेष्टः क्षीणे प्राणे नासिकयोच्छ्वसीत।<br> | |
− | + | दुष्टाश्वयुक्तमिव वाहमेनं विद्वान् मनो धारयेताप्रमत्तः॥९॥<br> | |
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− | + | समे शुचौ शर्करावह्निवालिका विवर्जिते शब्दजलाश्रयादिभिः।<br> | |
− | + | मनोनुकूले न तु चक्षुपीडने गुहानिवाताश्रयणे प्रयोजयेत्॥१०॥<br> | |
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− | + | पृथिव्यप्तेजोऽनिलखे समुत्थिते पञ्चात्मके योगगुणे प्रवृत्ते।<br> | |
− | + | न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्॥१२॥<br> | |
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− | + | यथैव बिंबं मृदयोपलिप्तं तेजोमयं भ्राजते तत् सुधान्तम्।<br> | |
− | + | तद्वाऽऽत्मतत्त्वं प्रसमीक्ष्य देही एकः कृतार्थो भवते वीतशोकः॥१४॥<br> | |
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− | + | एषो ह देवः प्रदिशोऽनु सर्वाः पूर्वो ह जातः स उ गर्भे अन्तः।<br> | |
− | + | स एव जातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ् जनास्तिष्ठति सर्वतोमुखः॥१६॥<br> | |
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22:29, 4 दिसम्बर 2008 का अवतरण
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युञ्जानः प्रथमं मनस्तत्त्वाय सविता धियः।
अग्नेर्ज्योतिर्निचाय्य पृथिव्या अध्याभरत्॥१॥
क्या इस जगत का मूल कारण, ब्रह्म कौन व् हम सभी?
उत्पन्न किससे, किसमें जीते, किसके हैं आधीन भी?
किसकी व्यवस्था के अनंतर, दुःख सुख का विधान है,
कथ कौन संचालक जगत का, कौन ब्रह्म महान है? [ १ ]
युक्तेन मनसा वयं देवस्य सवितुः सवे।
सुवर्गेयाय शक्त्या॥२॥
कहीं मूल कारण काल को कहीं प्रवृति को कारण कहा,
कहीं कर्म कारण तो कहीं, भवितव्य को माना महा,
पाँचों महाभूतों को कारण, तो कहीं जीवात्मा,
पर मूल कारण और कुछ, जिसे जानता परमात्मा। [ २ ]
युक्त्वाय मनसा देवान् सुवर्यतो धिया दिवम्।
बृहज्ज्योतिः करिष्यतः सविता प्रसुवाति तान्॥३॥
वेदज्ञों ने तब ध्यान योग से ब्रह्म का चिंतन किया,
उस आत्म भू अखिलेश ब्रह्म को, जाना जब मंथन किया।
परब्रह्म त्रिगुणात्मक लगे, पर सत्व, रज, तम से परे,
संपूर्ण कारण तत्वों पर, एकमेव ही शासन करे। [ ३ ]
युञ्जते मन उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः।
वि होत्रा दधे वयुनाविदेक इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः॥४॥
यह विश्व रूप है चक्र उसका , एक नेमि केन्द्र है,
सोलह सिरों व् तीन घेरों, पचास अरों में विकेन्द्र है।
छः अष्टको बहु रूपमय और त्रिगुण आवृत प्रकृति है,
इस विश्व चक्र में सम अरों, अंतःकरण की प्रवृति है। [ ४ ]
युजे वां ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिर्विश्लोक एतु पथ्येव सूरेः।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः॥५॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
अग्निर्यत्राभिमथ्यते वायुर्यत्राधिरुध्यते।
सोमो यत्रातिरिच्यते तत्र सञ्जायते मनः॥६॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
सवित्रा प्रसवेन जुषेत ब्रह्म पूर्व्यम्।
यत्र योनिं कृणवसे न हि ते पूर्तमक्षिपत्॥७॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
त्रिरुन्नतं स्थाप्य समं शरीरं हृदीन्द्रियाणि मनसा सन्निवेश्य।
ब्रह्मोडुपेन प्रतरेत विद्वान् स्रोतांसि सर्वाणि भयानकानि॥८॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
प्राणान् प्रपीड्येह संयुक्तचेष्टः क्षीणे प्राणे नासिकयोच्छ्वसीत।
दुष्टाश्वयुक्तमिव वाहमेनं विद्वान् मनो धारयेताप्रमत्तः॥९॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
समे शुचौ शर्करावह्निवालिका विवर्जिते शब्दजलाश्रयादिभिः।
मनोनुकूले न तु चक्षुपीडने गुहानिवाताश्रयणे प्रयोजयेत्॥१०॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
नीहारधूमार्कानिलानलानां खद्योतविद्युत्स्फटिकशशीनाम्।
एतानि रूपाणि पुरःसराणि ब्रह्मण्यभिव्यक्तिकराणि योगे॥११॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
पृथिव्यप्तेजोऽनिलखे समुत्थिते पञ्चात्मके योगगुणे प्रवृत्ते।
न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्॥१२॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
लघुत्वमारोग्यमलोलुपत्वं वर्णप्रसादः स्वरसौष्ठवं च।
गन्धः शुभो मूत्रपुरीषमल्पं योगप्रवृत्तिं प्रथमां वदन्ति॥१३॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
यथैव बिंबं मृदयोपलिप्तं तेजोमयं भ्राजते तत् सुधान्तम्।
तद्वाऽऽत्मतत्त्वं प्रसमीक्ष्य देही एकः कृतार्थो भवते वीतशोकः॥१४॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
यदात्मतत्त्वेन तु ब्रह्मतत्त्वं दीपोपमेनेह युक्तः प्रपश्येत्।
अजं ध्रुवं सर्वतत्त्वैर्विशुद्धं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपापैः॥१५॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
एषो ह देवः प्रदिशोऽनु सर्वाः पूर्वो ह जातः स उ गर्भे अन्तः।
स एव जातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ् जनास्तिष्ठति सर्वतोमुखः॥१६॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]
यो देवो अग्नौ योऽप्सु यो विश्वं भुवनमाविवेश।
य ओषधीषु यो वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमो नमः॥१७॥
यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]