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"मैं वह धनु हूँ / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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मुझ को चिन्ता छूट गई है-- | मुझ को चिन्ता छूट गई है-- | ||
मैं बस जानूँ, मैं धनु हूँ, जिस | मैं बस जानूँ, मैं धनु हूँ, जिस |
10:33, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण
मैं वह धनु हूँ, जिसे साधने
में प्रत्यंचा टूट गई है।
स्खलित हुआ है बाण, यदपि ध्वनि
दिग्दिगन्त में फूट गई है--
प्रलय-स्वर है वह, या है बस
मेरी लज्जाजनक पराजय,
या कि सफलता ! कौन कहेगा
क्या उस में है विधि का आशय !
क्या मेरे कर्मों का संचय
मुझ को चिन्ता छूट गई है--
मैं बस जानूँ, मैं धनु हूँ, जिस
की प्रत्यंचा टूट गई है!