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सिर पर कफ़न ओढ़े-- वैन चालक | सिर पर कफ़न ओढ़े-- वैन चालक | ||
20:36, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
जब-जब मैंने उठाई है क़लम
प्यार के बोल लिखने के लिए,
मेरे काग़ज़ के पन्नों पर आकर लेट जाती है,
मरे हुए लोगों की लाशें !
काग़ज़ के पन्नों पर,
उसे बीचोंबीच से चीरते हुए,
बहती रहती है नहर !
चाँदनी में खड़ी रहती है साइकिल-वैन
चाँदनी में खड़ा रहता है,
सिर पर कफ़न ओढ़े-- वैन चालक
बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता