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"याद का घर / अजय कुमार" के अवतरणों में अंतर

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अपनी मर्जी के फूल लगा लिये
  
 
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और देखिए मैं
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बरबाद हो गया.....
 
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02:39, 17 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

कभी
उसके साथ सिर्फ
एक कॉफी का कप भर
पिया था मैंने
और देखता हूँ तब से
धीरे धीरे
मेरे भीतर
एक और याद का घर
आबाद हो गया

मेरे देखते- देखते
उस याद ने
मुझसे बिना पूछे
अपने उस छोटे से घर में
अपनी मर्जी के पर्दे
अपनी मर्ज़ी के गुलदान
अपनी मर्जी के फूल लगा लिये

और देखिए मैं
बरबाद हो गया.....