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"मन की बातें /रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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जितने भी थे
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सगे सहोदर
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बोलो इनसे
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कौन कहे !
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लहू में जिनके
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फाग खेलती
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रही दगा
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उनका दंश,
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जहर कहाँ तक
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कोई सहे ।
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-0-(7/8/92- सवेरा संकेत 8 नवम्बर 92,विवरण पत्रिका-विशाखापट्टनम् नव-94)
  
 
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23:05, 22 दिसम्बर 2022 का अवतरण


लहरों से
टकराने की
कहकर बातें
एक उम्र वे
तट पर ही बस
खड़े रहे।
बँधे डोर से
सुविधाओं की
रोज चले
जितने भी थे
सगे सहोदर
सभी छले-
बोलो इनसे
मन की बातें
कौन कहे !
जिनके अधरों-
 पर बरसों से
खून लगा
लहू में जिनके
फाग खेलती
रही दगा
उनका दंश,
जहर कहाँ तक
कोई सहे ।
-0-(7/8/92- सवेरा संकेत 8 नवम्बर 92,विवरण पत्रिका-विशाखापट्टनम् नव-94)