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परम सुख / सुषमा गुप्ता

1,050 bytes added, 04:37, 11 अप्रैल 2023
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जंगल के उस छोर पर
तुम्हारे साथ
सूखे पत्तों के बीच बैठे हुए
 
बासी अखबार पर
रखकर
तुम्हारे हाथों से खाई
थोड़ी सूखी हुई रोटी ने
आत्मा को जो परमसुख दिया
 
देह के पाए
सब चरम सुख
उसी एक पल में
आजू- बाजू बिखरे
अचरज से पलकें झपकाते हुए
सोचने लगे
 
हम किस गुमान पर
आज तलक इतरा रहे थे!
 
मैंने एक मुस्कान
उन्हें देते हुए कहा था
दिल छोटा मत करो
 
तुम्हारा होना
थोड़ा और पास करता रहा है हमें
इसलिए
तुम्हारा भी शुक्रिया।
 
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