"क्या पूछते हैं दौर क्यूँ अफ़्सुर्दगी का है / रवि सिन्हा" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवि सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
वसलत – मिलन (meeting the beloved), | वसलत – मिलन (meeting the beloved), | ||
आगही – चेतना (awareness), | आगही – चेतना (awareness), | ||
− | + | फ़ुरक़त – वियोग (separation from the beloved), | |
तीरगी – अन्धेरा (darkness), | तीरगी – अन्धेरा (darkness), | ||
नातवाँ – कमज़ोर (weak), | नातवाँ – कमज़ोर (weak), |
20:37, 24 अप्रैल 2023 के समय का अवतरण
क्या पूछते हैं दौर क्यूँ अफ़्सुर्दगी का है
आज़ार इश्क़ का तो दिया आप ही का है
वसलत की रात थी तो गिला आगही से था
फ़ुरक़त की रात है तो गिला आगही का है
जगमग शहर हुजूम की आँखों में झाँकिए
अब तीरगी को ख़ौफ़ कहाँ रौशनी का है
बौने दरख़्त हैं यहाँ नस्लें भी नातवाँ
मिट्टी में कसर है कि हुनर आदमी का है
सूखी नदी के सामने पत्थर के देव हैं
रक़्साँ हुजूम भी है मगर किस सदी का है
पुरखे जो बुत-कदे में मिले तो लगा हमें
अपनी रगों में ख़ून किसी अजनबी का है
राहत के साथ आप जनाज़े में हैं शरीक
तस्दीक़ हो गई कि जनाज़ा उसी का है
शब्दार्थ :
अफ़्सुर्दगी – उदासी (depression),
आज़ार – रोग (disease),
वसलत – मिलन (meeting the beloved),
आगही – चेतना (awareness),
फ़ुरक़त – वियोग (separation from the beloved),
तीरगी – अन्धेरा (darkness),
नातवाँ – कमज़ोर (weak),
रक़्साँ – नाचता हुआ (dancing),
बुतकदा – मूर्त्तियों का घर यानी मन्दिर (an idol-temple),
तस्दीक़ – प्रमाणित (proven)