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"एक विदाई (ए पार्टिंग) सॉनेट / माइकेल ड्राइटन / विनीत मोहन औदिच्य" के अवतरणों में अंतर

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चूंकि नहीं है कोई सहायक, हम लें चुंबन और हों पृथक
रेत पर लिखा मैंने उसका नाम एक दिन हाथ से
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नहीं, मैं हूँ आश्वस्त, तुम नहीं हो सकोगी मुझसे संयुक्त
परंतु बहा कर ले गयीं उसे अचानक तीव्र लहरें
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और मैं हूँ आनंदित, हाँ पूर्ण मन से आनंदित अथक
दूसरे हाथ से लिख दिया मैंने उसका नाम फिर से
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कि इस प्रकार स्पष्टता से मैं स्वयं हो सकता हूँ मुक्त।
फिर से बना ले गईं अपना शिकार पीड़ा को भँवरें ।
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उसने कहा तू व्यर्थ ही करता रहता अथक प्रयास
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सदा के लिए मिला हाथ, हम करें सभी शपथ स्थगित
जो नश्वर है उसे अमर कदापि किया जा सकता नहीं
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ताकि जब फिर कभी हम मिलें जो दोबारा
मैं स्वयं चाहूँ क्षरित होना छोड़कर जग की उजास
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ये सोच, हम में से कोई न दिखाई दे तनिक भी व्यथित
लिखकर मिटाया गया मेरा नाम उभर सकता नहीं
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कि पुराने प्रेम का अभी तक है शेषांश हमारा
  
मैंने कहा नहीं है तुम्हारा नष्ट होना कदाचित् आसान
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अब अंतिम उसाँस प्रेम की, नवीनतम शेष श्वास
धूल मिलेंगी सारी तुच्छ वस्तुएँ अमर होगी ख्याति
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जब उसकी छूटती सी नाड़ी, मौन रहती भावना
तुम्हारे दुर्लभ गुणों को मेरी कविता बनायेगी महान
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जब घुटने मोड़े हुए हो, उसकी मृत्यु शय्या निकट विश्वास
स्वर्ग में चमकेगी तुम्हारे नाम की अलौकिक ज्योति
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और उसकी बंद आँखें कर रहीं हो निर्दोषता का सामना
  
जहाँ एक ओर मृत्यु करेगी सकल संसार का दमन
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अब यदि तुम चाहो, जब सभी कर चुके हों उसे समर्पित
वहीं हमारा प्रेम रहेगा अमर, मिलेगा उसे नव जीवन ।।
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तुम ही हो, जो कर सकती हो, उसे फिर से पुनर्जीवित ।।
         
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07:48, 28 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण

चूंकि नहीं है कोई सहायक, हम लें चुंबन और हों पृथक
नहीं, मैं हूँ आश्वस्त, तुम नहीं हो सकोगी मुझसे संयुक्त
और मैं हूँ आनंदित, हाँ पूर्ण मन से आनंदित अथक
कि इस प्रकार स्पष्टता से मैं स्वयं हो सकता हूँ मुक्त।

सदा के लिए मिला हाथ, हम करें सभी शपथ स्थगित
ताकि जब फिर कभी हम मिलें जो दोबारा
ये सोच, हम में से कोई न दिखाई दे तनिक भी व्यथित
कि पुराने प्रेम का अभी तक है शेषांश हमारा ।

अब अंतिम उसाँस प्रेम की, नवीनतम शेष श्वास
जब उसकी छूटती सी नाड़ी, मौन रहती भावना
जब घुटने मोड़े हुए हो, उसकी मृत्यु शय्या निकट विश्वास
और उसकी बंद आँखें कर रहीं हो निर्दोषता का सामना ।

अब यदि तुम चाहो, जब सभी कर चुके हों उसे समर्पित
तुम ही हो, जो कर सकती हो, उसे फिर से पुनर्जीवित ।।