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"देखकर माहौल घबराए हुए हैं / बसंत देशमुख" के अवतरणों में अंतर

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|विविध=मनोज प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित गजल संग्रह 'गज़लें हिंदुस्थानी' में ग़जलें समाहित,वाणी प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित गजल संग्रह 'गज़लें दुष्यंत के बाद' में ग़जलें समाहित,कवितायें बंगला भाषा में अनुदित एवं 'अदल बदल' मासिक कोलकाता के अंकों में प्रकाशित
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20:02, 20 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण


देखकर माहौल घबराए हुए हैं
इस शहर में हम नए आए हुए हैं

बोल दें तो आग लग जाए घरों में
दिल में ऐसे राज़ दफ़नाए हुए हैं

रौशनी कि खोज में मिलता अंधेरा
हम हज़ारों बार आजमाए हुए हैं

दिन में वे मूरत बने इंसानियत की
रात में हैवान के साए हुए हैं

दो ध्रुवों का फ़र्क है क्यों आचरण में
एक ही जब कोख के जाए हुए हैं