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"स्याह रातों के क़िस्से / वैभव भारतीय" के अवतरणों में अंतर

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डूब कर कीचड़ों में गले तक स्वयं  
 
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राह गंगा की हमको बताते रहे।  
 
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तुमको चाहा मगर तुमको पाया नहीं  
 
तुमको चाहा मगर तुमको पाया नहीं  

11:48, 30 मार्च 2024 के समय का अवतरण

रास्तों का असर हूँ जो चलता रहा
मंज़िलों से निडर हूँ जो चलता रहा
ज़िन्दगी में कई मोड़ आये मगर
तू मिला उन सभी पर तो चलता रहा।

पंक्तियों में नज़र आये चेहरा तेरा
पृष्ठों का आवरण पाये चेहरा तेरा
भागवत उपनिषद मैंने सारे पढ़े
फ़लसफ़ा सारा दोहराए चेहरा तेरा।

बस अधूरी कहानी मैं पढ़ता रहा
चोट खाई जवानी मैं पढ़ता रहा
कितनी नज़्में मुलाक़ात की छोड़कर
फ़ासलों की रवानी मैं पढ़ता रहा।

प्यार व्यापार है इक फ़ितूरी बिना
ठंडा अंगार है इक फ़ितूरी बिना
हाशिये पर पड़ा इक गणित द्वन्द का
बायें का शून्य है इक फ़ितूरी बिना।

तेरी आवाज़ ने जो किया क्या कहूँ
इक नमाज़ी को साक़ी किया क्या कहूँ
छोड़ कर वेद की श्रुति ऋचा छोड़कर
प्यार कान्हा का धारण किया क्या कहूँ।

महफ़िलों में तेरा नाम गाते रहें
ख़ुद को खोया मगर तुमको पाते रहें
तुमसे मिलना बिछड़ना तलब है मेरी
तेरी आग़ोश में गुनगुनाते रहें।

ये हमारा हृदय है सड़क तो नहीं
कितने मसलों का हल है सड़क तो नहीं
माना ग़म की सियाही बड़ी सुर्ख़ है
रास्ता नज़्म का है सड़क तो नहीं।

रात में धूप है दिन धुँधलका लगे
शेर ग़ालिब का कुछ हल्का-हल्का लगे
मामला सिर्फ़ मेरी तबीयत का है
जाम अश्कों का फिर छलका-छलका लगे।

धूप गालों में तेरे मलूँ जो कहे
मेरे अश्क़ों से कर लूँ वजू जो कहे
चाँद तारे सभी तोड़ते हैं मगर
कायनातों को वश में करूँ जो कहे।

वक़्त की रेत में क़ैद है ज़िंदगी
आशिक़ी का मुअज़्ज़न बनी ज़िंदगी
अब तो आती हँसी हर इबादत पर है
इक दुआ का सबब है बनी ज़िंदगी।

तेरा मिलना-बिछड़ना बड़ा खेल है
मस्तियों में उखड़ना बड़ा खेल है
कब तलक कोई रोये तेरी बात पर
तेरा कहकर मुकरना बड़ा खेल है।

राह कोई भी हो मन भटकता नहीं
शेर पिंजरे में अब यूँ तड़पता नहीं
कितनी शामें तेरे नाम पर लुट गयीं
दिल किसी बात पर अब धड़कता नहीं।

कुछ नया क्या कहूँ सब कहा जा चुका
हर नुमाइश का क़िस्सा पढ़ा जा चुका
इक हमारी कहानी बची शेष है
हर कहानी का मज़मू गढ़ा जा चुका।

इक तेरा नाम लब पर जो आया कभी
नज़्म बनकर के दुनिया में छाया वही
सर्द रातों की काली सियाही लिए
इश्क़ बनकर के सैलाब लाया वही।

हम जो सुनते रहे तुम सुनाते रहे
चाल दुनिया की हमको सिखाते रहे
डूब कर कीचड़ों में गले तक स्वयं
राह गंगा की हमको बताते रहे।

तुमको चाहा मगर तुमको पाया नहीं
आशिक़ी का ये क़िस्सा पराया नहीं
है हृदय में अमन सिर्फ़ इस बात का
पूरा होके बचा कुछ बकाया नहीं।

तू हवा मैं ज़मी तू कहाँ मैं कहीं
तू जो आबाद है मैं फ़ना हर कहीं
है तू दक्कन मैं उत्तर का वासी प्रिये!
तू दवा दर्द मैं हर तरफ़ हर कहीं।

मैंने खोया बहुत मैंने पाया बहुत
तेरी यादों ने हर दिन सताया बहुत
गोद में तेरे सोना भी इक स्वर्ग है
सोने की इस तलब ने जगाया बहुत।

तू बहुत दूर है या बहुत पास है
बीच का सारा क़िस्सा ही बकवास है
दुनिया कुछ भी कहे इस नये तर्क पर
आशिक़ी का अलग ही गुणा-भाग है।

मन को मारा बहुत तन खपाया बहुत
सर्द रातों ने मुझ को तपाया बहुत
दिल का पत्थर अकड़कर हिमालय हुआ
फिर हिमालय ने गंगा बहाया बहुत।

स्याह रातों के क़िस्से कहूँ ना कहूँ
चाहतों के वह हिस्से कहूँ ना कहूँ
कंठ नीले नहीं हैं तो क्या हो गया
पी गया हूँ हलाहल कहूँ ना कहूँ।