"अनुभूति-1 / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | कोई मिलता भी कैसे, चाहा नहीं किसी को। | ||
+ | सिर्फ चाहा जब तुम्हें ही, समय पाखी बन उड़ा..। | ||
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+ | जाऊँगा कहाँ मैं तुम्हारे बिना | ||
+ | रही तुम्हीं मंजिल रास्ता तुम्हीं हो! | ||
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+ | भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन | ||
+ | कोई ना आया, याद तेरी आ गई! | ||
+ | 12/10/24 | ||
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+ | कैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ | ||
+ | कैसे पाश दुःखों के काटूँ | ||
+ | निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ | ||
+ | पता नहीं किस द्वारे जाऊँ | ||
+ | 12/9/2024 | ||
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+ | जिस पल सोचा ढंग से जी लें, | ||
+ | तभी किसी ने पत्थर मारा। | ||
+ | कौन पाप मैंने कर डाला | ||
+ | सोच रहा है मन बेचारा। | ||
+ | 26/8/ 2024 | ||
+ | 6 | ||
+ | 6/8/ 2024 | ||
+ | महलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर! | ||
+ | रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया। | ||
+ | 6/8/ 2024 | ||
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+ | हो कितना भी अँधेरा, तुम्हें कभी रुकना नहीं है। | ||
+ | सुख -दुःख मौसम समझ लो, बीत ही सभी जाएँगे | ||
+ | हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें पथ में रुकना नहीं है। | ||
+ | 29/7/2024 | ||
+ | 8 | ||
+ | तुम समुद्र हो न? | ||
+ | कहाँ से आते हो? | ||
+ | इतना सारा प्यार | ||
+ | कहाँ से लाते हो! | ||
+ | कुछ तो बोलो | ||
+ | वाणी में वही मिश्री घोलो | ||
+ | 7/7/2024 | ||
+ | 9 | ||
+ | मैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ =23 | ||
+ | लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ-23 | ||
+ | 19-6-24 | ||
+ | 10 | ||
+ | पता नहीं कैसे हो त्राण? | ||
+ | तुझमें अटके मेरे प्राण। | ||
+ | 12-6-24 | ||
+ | 11 | ||
+ | 12-6-24 | ||
+ | सूर्य का मैं रोक दूँ रथ | ||
+ | बदल दूँ चाँद का भी पथ । | ||
+ | दिशा आँधी की उलट दूँ | ||
+ | धार सागर की पलट दूँ। | ||
+ | 12-6-24 | ||
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04:43, 11 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
तुम्हारे बिना
1
कोई मिलता भी कैसे, चाहा नहीं किसी को।
सिर्फ चाहा जब तुम्हें ही, समय पाखी बन उड़ा..।
2
जाऊँगा कहाँ मैं तुम्हारे बिना
रही तुम्हीं मंजिल रास्ता तुम्हीं हो!
20/10/24
3
भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन
कोई ना आया, याद तेरी आ गई!
12/10/24
4
कैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ
कैसे पाश दुःखों के काटूँ
निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ
पता नहीं किस द्वारे जाऊँ
12/9/2024
5
जिस पल सोचा ढंग से जी लें,
तभी किसी ने पत्थर मारा।
कौन पाप मैंने कर डाला
सोच रहा है मन बेचारा।
26/8/ 2024
6
6/8/ 2024
महलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर!
रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया।
6/8/ 2024
7
हो कितना भी अँधेरा, तुम्हें कभी रुकना नहीं है।
सुख -दुःख मौसम समझ लो, बीत ही सभी जाएँगे
हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें पथ में रुकना नहीं है।
29/7/2024
8
तुम समुद्र हो न?
कहाँ से आते हो?
इतना सारा प्यार
कहाँ से लाते हो!
कुछ तो बोलो
वाणी में वही मिश्री घोलो
7/7/2024
9
मैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ =23
लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ-23
19-6-24
10
पता नहीं कैसे हो त्राण?
तुझमें अटके मेरे प्राण।
12-6-24
11
12-6-24
सूर्य का मैं रोक दूँ रथ
बदल दूँ चाँद का भी पथ ।
दिशा आँधी की उलट दूँ
धार सागर की पलट दूँ।
12-6-24