"उल्लू बनाती हो? / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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+ | वो तो किसी ने शक नहीं किया | ||
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+ | मगर जोड़ी तो बिगड़ गई | ||
+ | कुछ तो इज़्ज़त रखो | ||
+ | पचास बार कहा | ||
+ | मेरी अटैची में | ||
+ | अपने कपड़े मत रखो | ||
+ | उस दिन | ||
+ | कवि सम्मेलन का मिला तार | ||
+ | जल्दी-जल्दी में | ||
+ | चल दिया अटैची उठाकर | ||
+ | खोली कांपुर जाकर | ||
+ | देखा तो सिर चकरा गया | ||
+ | पजामे की जगह | ||
+ | पेटीकोट आ गया | ||
+ | तब क्या खाक कविता पढ़ते | ||
+ | या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर | ||
+ | मंच पर पटकते | ||
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+ | एक माह से लगातार | ||
+ | कद्दू बना रही हो | ||
+ | वो भी रसेदार | ||
+ | ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता | ||
+ | खाना खाया नहीं जाता | ||
+ | बोलो तो कहती हो- | ||
+ | "बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।" | ||
+ | कल पड़ौसी का राजू | ||
+ | बाहर खड़ा मूली खा रहा था | ||
+ | ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था | ||
+ | कई बार कहा- | ||
+ | ज़्यादा न बोलो | ||
+ | संभालकर मुंह खोलो | ||
+ | अंग्रेज़ी बोलती हो | ||
+ | जब भी बाहर जाता हूँ | ||
+ | बड़ी आदा से कहती हो-"टा....टा" | ||
+ | और मुझे लगता है | ||
+ | जैसे मार दिया चांटा | ||
+ | मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है | ||
+ | ऐनिमा लगवा दो | ||
+ | तो डॉक्टर बोलीं-"डैनिमा लगा दो।" | ||
+ | वो तो ग़नीमत है | ||
+ | कि |
02:57, 29 नवम्बर 2008 का अवतरण
एक दिन मामला यों बिगड़ा
कि मारी ही घरवाली से
हो गया हमारा झगड़ा
स्वभाव से मैं नर्म हूँ
इसका अर्थ ये नहीं
के बेशर्म हूँ
पत्ते की तरह काँप जाता हूँ
बोलते-बोलते हाँफ जाता हूँ
इसलिये कम बोलता हूँ
मजबूर हो जाऊँ तभी बोलता हूँ
हमने कहा-"पत्नी हो
तो पत्नी की तरह रहो
कोई एहसान नहीं करतीं
जो बनाकर खिलाती हो
क्या ऐसे ही घर चलाती हो
शादी को हो गये दस साल
अक्ल नहीं आई
सफ़ेद हो गए बाल
पड़ौस में देखो अभी बच्ची है
मगर तुम से अच्छी है
घर कांच सा चमकता है
और अपना देख लो
देखकर खून छलकता है
कब से कह रहा हूँ
तकिया छोटा है
बढ़ा दो
दूसरा गिलाफ चढ़ा दो
चढ़ाना तो दूर रहा
निकाल-निकाल कर रूई
आधा कर दिया
और रूई की जगह
कपड़ा भर दिया
कितनी बार कहा
चीज़े संभालकर रखो
उस दिन नहीं मिला तो नहीं मिला
कितना खोजा
और रूमाल कि जगह
पैंट से निकल आया मोज़ा
वो तो किसी ने शक नहीं किया
क्योकि हमने खट से
नाक पर रख लिया
काम करते-करते टेबल पर पटक दिया-
"साहब आपका मोज़ा।"
हमने कह दिया
हमारा नहीं किसी और का होगा
अक़्ल काम कर गई
मगर जोड़ी तो बिगड़ गई
कुछ तो इज़्ज़त रखो
पचास बार कहा
मेरी अटैची में
अपने कपड़े मत रखो
उस दिन
कवि सम्मेलन का मिला तार
जल्दी-जल्दी में
चल दिया अटैची उठाकर
खोली कांपुर जाकर
देखा तो सिर चकरा गया
पजामे की जगह
पेटीकोट आ गया
तब क्या खाक कविता पढ़ते
या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर
मंच पर पटकते
एक माह से लगातार
कद्दू बना रही हो
वो भी रसेदार
ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता
खाना खाया नहीं जाता
बोलो तो कहती हो-
"बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।"
कल पड़ौसी का राजू
बाहर खड़ा मूली खा रहा था
ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था
कई बार कहा-
ज़्यादा न बोलो
संभालकर मुंह खोलो
अंग्रेज़ी बोलती हो
जब भी बाहर जाता हूँ
बड़ी आदा से कहती हो-"टा....टा"
और मुझे लगता है
जैसे मार दिया चांटा
मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है
ऐनिमा लगवा दो
तो डॉक्टर बोलीं-"डैनिमा लगा दो।"
वो तो ग़नीमत है
कि