भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कि हमें देने के लिए ही
धरती ने कितना कुछ उपजाया है।
 
और प्रेम!
वह कहीं और नहीं,
हर छोटी करुणा में छिपा होता है।
किसी अजनबी को मुस्कान देना,
किसी की थकी हथेली को थाम लेना,
किसी की व्यथा को धैर्य से सुन लेना|
यही वह उजाला है
जो अंधकार को पिघला देता है।
 
जब तक एक भी किरण है,
हम उसके सहारे आगे बढ़ेंगे।
हम यहाँ केवल जी लेने के लिए नहीं,
बल्कि पनपने के लिए आए हैं।
</poem>