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"मैं किसान का बेटा / प्रभात" के अवतरणों में अंतर
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21:25, 9 दिसम्बर 2008 का अवतरण
मैं किसान का बेटा
मेरा सारा बदन
धनिए के टाट पर सोने से अकड़ा-ऎंठा
इस वन के बबूलों में सोई
चिडियाओं की चहचहाटों ने
मेरी आँखों पर पड़ी पलकों को हिलाया
मुझे जगाया
जाग गया हूँ
निर्जन में झाँक रहा हूँ
हवा गा रही है
मैं भी गा रहा हूँ
मीठा लग रहा है
मैंने देखा थोड़ा-सा अंधेरा
वह किस तरह ढहा-गिरा-झरा
और अब
ये अंधेरे की आख़िरी पर्त गिर रही है
और वह दिखा पूरब
बादलों के मचान से वह सूर्य उगा
काम करने की लगन लाल उर्जा से भरा।