भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं किसान का बेटा / प्रभात

16 bytes added, 19:18, 7 अप्रैल 2012
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
मैं किसान का बेटा
मेरा सारा बदन
धनिए के टाट पर सोने से अकड़ा-ऎंठाऐंठा
इस वन के बबूलों में सोई
मैं भी गा रहा हूँ
मीठा लग रहा है
मैंने देखा थोड़ा-सा अंधेराअँधेरा
वह किस तरह ढहा-गिरा-झरा
और अब
ये अंधेरे अँधेरे की आख़िरी पर्त गिर रही है
और वह दिखा पूरब
बादलों के मचान से वह सूर्य उगा
काम करने की लगन लाल उर्जा से भरा।
 
 
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits