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"अक्स / विष्णु खरे" के अवतरणों में अंतर
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17:06, 27 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
आईने में देखते हुए
इस तरह इतनी देर तक देखना
कि शीशा चकनाचूर हो जाये-
फिर भी इतना मुश्किल नहीं
वह शीशे में
यूँ और इतना देखना चाहता है
कि बिल्लौर में तिड़कन तक न आये
सिर्फ़ जो दिख रहा है वह पुर्जा-पुर्जा हो जाए
और जो देख रहा है वह भी
फिर भी एक अक्स बचा रहे
जिसका वह है उसे जाने कैसे देखता हुआ