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"एक था जंगल / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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एक था जंगल
 
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एक थी नदी  
 
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जंगल खड़ा-खड़ा जगता था
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निश्रवण सुनता
 
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अपने पनाहगुजीन
 
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पक्षियों का  कलरव
 
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वन्य जीवों की पगध्वनियाँ
 
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हवा चलती
 
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तो डोलता मस्ती में
 
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हिलते उसके शंक्वाकार फल
 
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मूक घण्टियों की तरह
 
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कभी-कभी तूफ़ान में झूमने लगते
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बेतरह
 
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उसके सुदीर्घ पेड़
 
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चौंक, डर जाते
 
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पास के गाँव
 
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नदी लेटी रहती
 
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उत्तर से दक्षिण
 
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तो लेटी-लेटी ही
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वह थी एक अनादि धारा
 
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फव्वारे की तरह फूटी थी वह
 
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बहती थी ढलानों पर
 
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शावक  झुण्डों की तरह
 
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पहुँचती जब समतल मैदानों में
 
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आसपास होते घास के शाद्वल
 
आसपास होते घास के शाद्वल
 
 
कभी कभी झकोरों से
 
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लहरिल हिलते
 
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महीन गाते
 
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उनकी लय में लय मिलाते
 
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हिरन, बारहसींगों और
 
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खरगोशों के झुण्ड
 
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जैसे बज रहा हो कोई
 
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अदभुत वृन्दगान
 
अदभुत वृन्दगान
 
 
अपनी सौम्य धुन में
 
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उसके तट नहाते न अघाते
 
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किसानों के हरियल खेत
 
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खड़े रहते  
 
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ढलानों पर ध्यानस्थ
 
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नदी अन्तत: मिल जाती
 
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सागर में
 
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अपने प्रिय जंगल को  
 
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कहीं पीछे छोड़।
 
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13:09, 12 जनवरी 2009 का अवतरण

एक था जंगल
एक थी नदी
(तब था मैं एक छोटा बालक)
जंगल खड़ा-खड़ा जगता था
खड़ा-खड़ा सोता
निश्रवण सुनता
अपने पनाहगुजीन
पक्षियों का कलरव
वन्य जीवों की पगध्वनियाँ

हवा चलती
तो डोलता मस्ती में
हिलते उसके शंक्वाकार फल
मूक घण्टियों की तरह

कभी-कभी तूफ़ान में झूमने लगते
बेतरह
उसके सुदीर्घ पेड़

चौंक, डर जाते
पास के गाँव

नदी लेटी रहती
उत्तर से दक्षिण
कई घुमावों में बहती
चलती
तो लेटी-लेटी ही

वह थी एक अनादि धारा
बर्फ़ की चट्टानों से
फव्वारे की तरह फूटी थी वह
बहती थी ढलानों पर
शावक झुण्डों की तरह
पहुँचती जब समतल मैदानों में
आसपास होते घास के शाद्वल
कभी कभी झकोरों से
लहरिल हिलते

महीन गाते
उनकी लय में लय मिलाते
हिरन, बारहसींगों और
खरगोशों के झुण्ड
जैसे बज रहा हो कोई
अदभुत वृन्दगान
अपनी सौम्य धुन में

उसके तट नहाते न अघाते
किसानों के हरियल खेत
खड़े रहते
ढलानों पर ध्यानस्थ

नदी अन्तत: मिल जाती
सागर में
अपने प्रिय जंगल को
कहीं पीछे छोड़।