"अहमद / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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चिनारों की | चिनारों की | ||
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शान्त, | शान्त, | ||
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निर्धूम घाटी | निर्धूम घाटी | ||
− | + | काँच-सा बजता | |
− | काँच सा बजता | + | बर्फ़ का ठण्डा पानी |
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सोनमर्ग की सुतवाँ ढलानें | सोनमर्ग की सुतवाँ ढलानें | ||
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और हरी | और हरी | ||
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मखमली दूब | मखमली दूब | ||
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और वे हवाएँ | और वे हवाएँ | ||
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जो बचपन में खेलीं | जो बचपन में खेलीं | ||
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उसकी जोया | उसकी जोया | ||
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उसके अली के साथ | उसके अली के साथ | ||
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वह बरसों से घर नहीं गया | वह बरसों से घर नहीं गया | ||
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न मिल पाया | न मिल पाया | ||
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अपनी अन्धी दादी को | अपनी अन्धी दादी को | ||
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जो सुनाती थी | जो सुनाती थी | ||
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कश्मीरी में कहानियाँ | कश्मीरी में कहानियाँ | ||
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अल्लाताला से माँगती दुआ | अल्लाताला से माँगती दुआ | ||
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कि अहमद को रखना महफूज | कि अहमद को रखना महफूज | ||
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वह जिये | वह जिये | ||
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अपने पुश्तैनी फिकरोफन में | अपने पुश्तैनी फिकरोफन में | ||
− | + | एक से एक गलीचे बुने | |
− | एक से एक | + | |
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जो हों असली कश्मीरी | जो हों असली कश्मीरी | ||
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फुलकारी में | फुलकारी में | ||
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इरानियों से भी बेहतर | इरानियों से भी बेहतर | ||
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पर, सद अफसोस! | पर, सद अफसोस! | ||
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जाने कब क्या चूक हुई | जाने कब क्या चूक हुई | ||
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इस खुदाई मन्सूबे में | इस खुदाई मन्सूबे में | ||
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कि वह चला गया सरहद पार | कि वह चला गया सरहद पार | ||
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उसके हाथ थे | उसके हाथ थे | ||
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पीछे की और बँधे | पीछे की और बँधे | ||
− | + | और आँखों पर भी थी पट्टियाँ | |
− | और आँखों पर भी थी | + | |
− | + | ||
घेर कर ले गये थे उसे | घेर कर ले गये थे उसे | ||
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आदमजाद भेडिय़े सरहद पार | आदमजाद भेडिय़े सरहद पार | ||
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अपने जहादी लश्कर में | अपने जहादी लश्कर में | ||
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पीछे छूट गया था | पीछे छूट गया था | ||
− | |||
माँ का स्नेहिल चेहरा | माँ का स्नेहिल चेहरा | ||
− | + | उसकी मान-मनुहार | |
− | उसकी | + | |
− | + | ||
मांस के पकवान | मांस के पकवान | ||
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और मौसम में महकता | और मौसम में महकता | ||
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उसका आँगन | उसका आँगन | ||
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तारों की छाँव में गाता-नाचता | तारों की छाँव में गाता-नाचता | ||
− | + | एक ख़ुशनुमा कश्मीरी परिवार | |
− | एक | + | |
− | + | ||
घर पर तारीं है अब | घर पर तारीं है अब | ||
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अनिर्वच आतंक | अनिर्वच आतंक | ||
रात को जब | रात को जब | ||
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घाटी में फैलता है | घाटी में फैलता है | ||
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डरावना अँधेरा | डरावना अँधेरा | ||
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बेटे का ऐसा लगा सदमा | बेटे का ऐसा लगा सदमा | ||
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कि टूट गयी | कि टूट गयी | ||
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अब्बा रहमतुल्ला की कमर | अब्बा रहमतुल्ला की कमर | ||
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अहमद अब देख रहा | अहमद अब देख रहा | ||
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अपनी आत्मा के | अपनी आत्मा के | ||
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गाढ़े एकान्त में | गाढ़े एकान्त में | ||
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वादी में सूरज का डूबना | वादी में सूरज का डूबना | ||
− | + | दूर-दूर चमकतीं | |
− | दूर दूर चमकतीं | + | बर्फ़ की ख़ामोश चोटियाँ |
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− | + | ||
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इन सब को तोल रहा वह | इन सब को तोल रहा वह | ||
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मन ही मन | मन ही मन | ||
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नेकी और बदी के तराजू में | नेकी और बदी के तराजू में | ||
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दर्ज करता | दर्ज करता | ||
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अपनी जाति की हार | अपनी जाति की हार | ||
− | + | जेहन के फडफ़ड़ाते भोज-पत्र पर | |
− | जेहन के फडफ़ड़ाते भोज पत्र पर | + | |
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जिसे अब वह | जिसे अब वह | ||
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नहीं कर पायेगा अनलिखा। | नहीं कर पायेगा अनलिखा। | ||
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18:54, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
याद आई उसे
चिनारों की
शान्त,
निर्धूम घाटी
काँच-सा बजता
बर्फ़ का ठण्डा पानी
सोनमर्ग की सुतवाँ ढलानें
और हरी
मखमली दूब
और वे हवाएँ
जो बचपन में खेलीं
उसकी जोया
उसके अली के साथ
वह बरसों से घर नहीं गया
न मिल पाया
अपनी अन्धी दादी को
जो सुनाती थी
कश्मीरी में कहानियाँ
अल्लाताला से माँगती दुआ
कि अहमद को रखना महफूज
वह जिये
अपने पुश्तैनी फिकरोफन में
एक से एक गलीचे बुने
जो हों असली कश्मीरी
फुलकारी में
इरानियों से भी बेहतर
पर, सद अफसोस!
जाने कब क्या चूक हुई
इस खुदाई मन्सूबे में
कि वह चला गया सरहद पार
उसके हाथ थे
पीछे की और बँधे
और आँखों पर भी थी पट्टियाँ
घेर कर ले गये थे उसे
आदमजाद भेडिय़े सरहद पार
अपने जहादी लश्कर में
पीछे छूट गया था
माँ का स्नेहिल चेहरा
उसकी मान-मनुहार
मांस के पकवान
और मौसम में महकता
उसका आँगन
तारों की छाँव में गाता-नाचता
एक ख़ुशनुमा कश्मीरी परिवार
घर पर तारीं है अब
अनिर्वच आतंक
रात को जब
घाटी में फैलता है
डरावना अँधेरा
बेटे का ऐसा लगा सदमा
कि टूट गयी
अब्बा रहमतुल्ला की कमर
अहमद अब देख रहा
अपनी आत्मा के
गाढ़े एकान्त में
वादी में सूरज का डूबना
दूर-दूर चमकतीं
बर्फ़ की ख़ामोश चोटियाँ
इन सब को तोल रहा वह
मन ही मन
नेकी और बदी के तराजू में
दर्ज करता
अपनी जाति की हार
जेहन के फडफ़ड़ाते भोज-पत्र पर
जिसे अब वह
नहीं कर पायेगा अनलिखा।