भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कल्पवृक्ष / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | बड़ी मेहनत से पाले गए कल्पवृक्ष के शिखर पर बसेरा है सर्वभक्षी कव्वों का | + | बड़ी मेहनत से पाले गए |
+ | कल्पवृक्ष के शिखर पर बसेरा है | ||
+ | सर्वभक्षी कव्वों का | ||
+ | |||
फलों को कुतर–कुतर कर | फलों को कुतर–कुतर कर | ||
− | टहनियों पर | + | टहनियों पर टाँग दी है |
− | तने पर हिज्जे सम्प्रदायों के शाखाओं से रिसता है गोंद विधर्मता का | + | जातियों की लम्बी–लम्बी सूचियाँ |
+ | टाँक दिए हैं | ||
+ | तने पर हिज्जे सम्प्रदायों के | ||
+ | शाखाओं से रिसता है गोंद विधर्मता का | ||
− | छाया में | + | छाया में उसकी रचना बलात्कारों की |
पत्ता-पत्ता है छलनी | पत्ता-पत्ता है छलनी | ||
स्वार्थ के तीरों से | स्वार्थ के तीरों से | ||
भीतर ही भीतर से | भीतर ही भीतर से | ||
− | पड़ा है खोखला तन्त्र का महातरु | + | पड़ा है खोखला |
− | भरपेट कुड़-कुड़ाते हैं कव्वे महावृक्ष की जड़ें गड़ती जा रहीं गहरी | + | तन्त्र का महातरु |
− | तना | + | |
− | हवा में डोलते जर्जर वृक्ष पर कभी | + | भरपेट कुड़-कुड़ाते हैं कव्वे |
+ | महावृक्ष की जड़ें गड़ती जा रहीं | ||
+ | गहरी ज़मीन में | ||
+ | तना मज़बूत | ||
+ | तना रहा बराबर | ||
+ | लहलहा रहीं शाखाएँ हरी–भरीं | ||
+ | प्रभामंडल में इसके | ||
+ | पल रही | ||
+ | पसरी खुशहाली | ||
+ | हवा में डोलते | ||
+ | जर्जर वृक्ष पर | ||
+ | कभी काँप उठते हैं कव्वे | ||
+ | देते महावृक्ष के | ||
+ | टूट गिरने का | ||
+ | रहस्यमय संकेत | ||
</poem> | </poem> |
03:33, 14 जनवरी 2009 का अवतरण
बड़ी मेहनत से पाले गए
कल्पवृक्ष के शिखर पर बसेरा है
सर्वभक्षी कव्वों का
फलों को कुतर–कुतर कर
टहनियों पर टाँग दी है
जातियों की लम्बी–लम्बी सूचियाँ
टाँक दिए हैं
तने पर हिज्जे सम्प्रदायों के
शाखाओं से रिसता है गोंद विधर्मता का
छाया में उसकी रचना बलात्कारों की
पत्ता-पत्ता है छलनी
स्वार्थ के तीरों से
भीतर ही भीतर से
पड़ा है खोखला
तन्त्र का महातरु
भरपेट कुड़-कुड़ाते हैं कव्वे
महावृक्ष की जड़ें गड़ती जा रहीं
गहरी ज़मीन में
तना मज़बूत
तना रहा बराबर
लहलहा रहीं शाखाएँ हरी–भरीं
प्रभामंडल में इसके
पल रही
पसरी खुशहाली
हवा में डोलते
जर्जर वृक्ष पर
कभी काँप उठते हैं कव्वे
देते महावृक्ष के
टूट गिरने का
रहस्यमय संकेत