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"कल लिखूंगा / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

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सह लूँ आज का दिन और  
 
सह लूँ आज का दिन और  
 
आने वाली रात का भय ज़्यादा है बीती रात से
 
आने वाली रात का भय ज़्यादा है बीती रात से
  सुना है तूफान आज भी आएगा  
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  सुना है तूफ़ान आज भी आएगा  
 
सूरज आज भी लटकाया जाएगा कुछ पल  
 
सूरज आज भी लटकाया जाएगा कुछ पल  
 
पश्चिम की चोटी पर  
 
पश्चिम की चोटी पर  
 
चाँद को उगते हुए कई घाव लगेंगे  
 
चाँद को उगते हुए कई घाव लगेंगे  
सब दृश्य मुझे ही देखने पड़ेंगे नंगी आंखों  
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सब दृश्य मुझे ही देखने पड़ेंगे नंगी आँखों  
 
मातम होगा आज की रात भी  
 
मातम होगा आज की रात भी  
 
गीदड़ सहला रहे हैं गले  
 
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बरगद रोएगा अकेला  
 
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पागल मेहरू लहराएगा मुट्ठियाँ  
 
पागल मेहरू लहराएगा मुट्ठियाँ  
नहीं सुनेगा कोई उसकी आपबीती
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नहीं सुनेगा कोई उसकी आप-बीती
 
माथे फटेंगे मंदिर की सीढ़ियों पर  
 
माथे फटेंगे मंदिर की सीढ़ियों पर  
 
अंधा शौंकिया लाठी पटक-पटक कर  
 
अंधा शौंकिया लाठी पटक-पटक कर  

07:50, 19 जनवरी 2009 का अवतरण

सह लूँ आज का दिन और
आने वाली रात का भय ज़्यादा है बीती रात से
 सुना है तूफ़ान आज भी आएगा
सूरज आज भी लटकाया जाएगा कुछ पल
पश्चिम की चोटी पर
चाँद को उगते हुए कई घाव लगेंगे
सब दृश्य मुझे ही देखने पड़ेंगे नंगी आँखों
मातम होगा आज की रात भी
गीदड़ सहला रहे हैं गले
झाड़ियों में दुबके
सभा आज भी नहीं बैठेगी
बरगद रोएगा अकेला
पागल मेहरू लहराएगा मुट्ठियाँ
नहीं सुनेगा कोई उसकी आप-बीती
माथे फटेंगे मंदिर की सीढ़ियों पर
अंधा शौंकिया लाठी पटक-पटक कर
कस्बे को जगाने का प्रयास करेगा
किसी हॉरर शो को देखकर
भूत-भूत चिल्लाएंगे बच्चे
यह क्यों हो रहा है, कल लिखूंगा तुम्हें
आज मुझे भेजने हैं
एक हत्या और कुछ बलात्कारों के समाचार।