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वह अपने हाथों से | वह अपने हाथों से |
22:40, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
वह अपने हाथों से
अँधेरे में खोई अपनी देह को
खोजती-खोजती सो जाती है थककर
अपने आलोक के झीने जाल में
धीरे-धीरे झूलता है ताम्बई चन्द्रमा
वह आईने के सामने खड़ी
सोचती है : आईना एक दीवार है
जहाँ से टकराकर हर बार गेंद की तरह
लौट आता है
मेरा ही चेहरा !