भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गड्ढा / अनूप सेठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <Poem> यह गङ्ढा दो अँगुल गहरा हाथ भर लँबा...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अनूप सेठी
 
|रचनाकार=अनूप सेठी
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
यह गङ्ढा दो अँगुल गहरा
 
यह गङ्ढा दो अँगुल गहरा

22:36, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

यह गङ्ढा दो अँगुल गहरा
हाथ भर लँबा चौड़ा
सड़क किनारे बेमालूम

पानी से भरा है यानी बारिश हो के चुकी है
चाँद चमकता है जब उसकी सीध में आता है
जब टहलता हुआ आगे निकल जाता है
लैम्प पोस्ट फिर से टिमटिमाने लगती है
इसके दिल के करीब

कोई पहिया गङ्ढे को रोंद जाता है
गीली मिट्टी का छोटा सा घेरा बनता है
पसलियों की तरह पत्थरों के नुक्कर दिखते हैं
उभरे हुए जरा जरा से
यहां टहलता था चांद
लैम्प पोस्ट इसी जगह टिमटिमाती थी
मिट्टी छिटकती दूर सुदूर जा गिरती
ओझल होती जाती
तेज धावती सड़क किनारे

इसमें बारिश गिरती चाँद चमकता तारे मंडरातेँ हैं
शहर भर की बस्तियां जलती बुझती हैं
हाथ भर के इस आइने में अँधेरा भी प्रतिबिंबित होता है

साइकिल सवार कोई गिरते गिरते बचता
बच्चा जब रुआंसा हो आगे बढ़ता
इसके हिरदे में बुल्ले शाह की काफी के बोल गूँजते
सड़क की आपाधापी में
अफीम खाकर यह अमली ऊँघता रहता है

नजर से ओढल हुआ रहता यह धब्बा
किसी का मौन या मायूसी
या सहमी हुई किसी की मासूमियत है
अड़ियल घोड़ा है
घाव है या घाव का निशान है
जो टीसता भी नहीं
या बिसरा हुआ कोई मिसरा है
                               (1999)