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"काँपते पाणि में उठा लिया प्रिय तुमने फिर रस-भरित चषक / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर

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काँपते पाणि में उठा लिया प्रिय तुमने फिर रस-भरित चषक।
 
काँपते पाणि में उठा लिया प्रिय तुमने फिर रस-भरित चषक।
 
 
मृदु चिबुक चूम मेरे अधरों पर उसे रख दिया प्राण! ललक।
 
मृदु चिबुक चूम मेरे अधरों पर उसे रख दिया प्राण! ललक।
 
 
क्या बतलाऊँ कैसी तेरी प्रिय उमड़ी प्रीति अगाधा थी।
 
क्या बतलाऊँ कैसी तेरी प्रिय उमड़ी प्रीति अगाधा थी।
 
 
अनवरत गिरा बोलती जा रही राधा-राधा-राधा थी।
 
अनवरत गिरा बोलती जा रही राधा-राधा-राधा थी।
 
 
”तुम बिना न जी सकता“ कहते थे भाल हमारा सहलाकर।
 
”तुम बिना न जी सकता“ कहते थे भाल हमारा सहलाकर।
 
 
उर पर लटकते हार से फिर तुम लगे खेलने लीलाधर।
 
उर पर लटकते हार से फिर तुम लगे खेलने लीलाधर।
 
 
तव हास-विलास-कला-विधुरा बावरिया बरसाने वाली ।
 
तव हास-विलास-कला-विधुरा बावरिया बरसाने वाली ।
 
 
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥80॥
 
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥80॥
 
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20:23, 2 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण


काँपते पाणि में उठा लिया प्रिय तुमने फिर रस-भरित चषक।
मृदु चिबुक चूम मेरे अधरों पर उसे रख दिया प्राण! ललक।
क्या बतलाऊँ कैसी तेरी प्रिय उमड़ी प्रीति अगाधा थी।
अनवरत गिरा बोलती जा रही राधा-राधा-राधा थी।
”तुम बिना न जी सकता“ कहते थे भाल हमारा सहलाकर।
उर पर लटकते हार से फिर तुम लगे खेलने लीलाधर।
तव हास-विलास-कला-विधुरा बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥80॥