भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तब्दीली / ब्रज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
पर्दे के गिरने
 
पर्दे के गिरने

11:17, 21 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

पर्दे के गिरने
और फिर उठने के बाद भी
नहीं दिखाई दिया
जाना-पहचाना सा कुछ भी

जो सुनना चाहता हूँ
नहीं कहा जाता अब
जो देखना चाहता हूँ
नहीं दिखाई देता

तब्दीली गुज़र रही है इधर से
अवसान और प्रस्थान के बीच
निर्मित हो रही है एक रेखा।