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"नूरजहाँ की मज़ार पर / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर

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सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे
 
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे
  
सहमी सहमी सी फ़िज़ाओं में ये विराँ मर्क़द
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सहमी सहमी सी फ़िज़ाओं में ये वीराँ मर्क़द
 
इतना ख़ामोश है फ़रियादकुना हो जैसे
 
इतना ख़ामोश है फ़रियादकुना हो जैसे
 
सर्द शाख़ों में हवा चीख़ रही है ऐसे
 
सर्द शाख़ों में हवा चीख़ रही है ऐसे
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तू मुझे छोड़िके ठुकरा के भी जा सकती है
 
तू मुझे छोड़िके ठुकरा के भी जा सकती है
 
तेरे हाथों में मेरा सात है ज़न्जीर नहीं
 
तेरे हाथों में मेरा सात है ज़न्जीर नहीं
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'''शब्दार्थ '''<br>
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मगरूर - घमंडी, <br>
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तस्कीं - संतोष, चैन <br>
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तकदीस - पवित्रता<br>

15:19, 6 फ़रवरी 2009 का अवतरण

पहलू-ए-शाह में ये दुख़्तर-ए-जमहूर की क़बर
कितने गुमगुश्ता फ़सानों का पता देती है
कितने ख़ूरेज़ हक़ायक़ से उठाती है नक़ाब
कितनी कुचली हुइ जानों का पता देती है

कैसे मग़्रूर शहन्शाहों की तस्कीं के लिये
सालहासाल हसीनाओं के बाज़ार लगे
कैसे बहकी हुई नज़रों की तय्युश के लिये
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे

सहमी सहमी सी फ़िज़ाओं में ये वीराँ मर्क़द
इतना ख़ामोश है फ़रियादकुना हो जैसे
सर्द शाख़ों में हवा चीख़ रही है ऐसे
रूह-ए-तक़दीस-ओ-वफ़ा मर्सियाख़्वाँ हो जैसे

तू मेरी जाँ हैरत-ओ-हसरत से न देख
हम में कोई भी जहाँ नूर-ओ-जहांगीर नहीं
तू मुझे छोड़िके ठुकरा के भी जा सकती है
तेरे हाथों में मेरा सात है ज़न्जीर नहीं


शब्दार्थ


मगरूर - घमंडी,

तस्कीं - संतोष, चैन

तकदीस - पवित्रता