भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुबह से शाम तलक / मीना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना कुमारी }} category: नज़्म <poem> सुबह से शाम तलक दुस...)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं  
 
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं  
 
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है  
 
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है  
जिन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन  
+
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन  
 
और फिर रूह पे छा जाते हैं  
 
और फिर रूह पे छा जाते हैं  
 
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा  
 
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा  
दिल में रह रहके ख्याल आता है  
+
दिल में रह रहके ख़्याल आता है  
जिन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?  
+
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?  
प्यार इक ख्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ  
+
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ  
 
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ
 
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ
 +
</poem>

01:54, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख़्याल आता है
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ