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"सुबह से शाम तलक / मीना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं | जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं | ||
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है | रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है | ||
− | + | ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन | |
और फिर रूह पे छा जाते हैं | और फिर रूह पे छा जाते हैं | ||
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा | दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा | ||
− | दिल में रह रहके | + | दिल में रह रहके ख़्याल आता है |
− | + | ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं? | |
− | प्यार इक | + | प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ |
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ | क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ | ||
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01:54, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख़्याल आता है
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ