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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! | बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! |
23:27, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक: बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
रचनाकार: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, काँपते थे दोनों पाँव बंधु! वह हँसी बहुत-कुछ कहती थी, फिर भी अपने में रहती थी, सबकी सुनती थी, सहती थी, देती थी सबको दाँव, बंधु!