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"चारदीवारी की गाथा / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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मैं एक राजा के बाग़ की चारदीवारी | मैं एक राजा के बाग़ की चारदीवारी |
13:18, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैं एक राजा के बाग़ की चारदीवारी
अगोरती रही आम और लीची बेर अमरूद
सदी गुज़री राजे गुज़रे सड़े फल ढेर
कितनी बकरियों गौवों को मैंने टपने से रोका
ललचाए छोकरों लुभाए राहगीरों
किसी को मेरे रहते कुछ नहीं भेंटा
बस चिड़ियों पर मेरा वश नहीं था
और अब गिर रही हूँ
चारों तरफ़ से झड़ रही हूँ
अब कौन आएगा बचाने
मंजरों से धरती तक लोटा है आम