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"जैसे / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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13:19, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जैसे
मैं बहुत सारी आवाज़ें नहीं सुन पा रहा हूँ
चींटियों के शक्कर तोड़ने की आवाज़
पंखुड़ी के एक एक कर खुलने की आवाज़
गर्भ में जीवन बूंद गिरने की आवाज़
अपने ही शरीर में कोशिकाएँ टूटने की आवाज़

इस तेज़ बहुत तेज़ चलती पृथ्वी के अन्धड़ में
जैसे मैं बहुत सारी आवाज़ें नहीं सुन रहा हूँ
वैसे ही तो होंगे वे लोग भी
जो सुन नहीं पाते गोली चलने की आवाज़ ताबड़तोड़
और पूछते हैं--कहाँ है पृथ्वी पर चीख ?