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"कभी-कभी / केशव" के अवतरणों में अंतर
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− | अपने | + | अपने क़द से ही |
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बिन मरे ही मर जाता है | बिन मरे ही मर जाता है | ||
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बड़ा भी हो जाता है आदमी | बड़ा भी हो जाता है आदमी | ||
कभी-कभी डूबकर भी | कभी-कभी डूबकर भी |
13:58, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
कभी-कभी आदमी
अपने क़द से ही
डर जाता है
अपने किए के लिए
बिन मरे ही मर जाता है
यह इसलिए होता है
कि वह अपने क़द से
छोटा होकर
दूसरे के क़द में आँख मूंद
लगा देता है छलांग
और अपने दुख से
निजात पाने के लिए
दूसरे के सुख में
लगा देता है सेंध
और कभी-कभी
अपने क़द से
बड़ा भी हो जाता है आदमी
कभी-कभी डूबकर भी
तिर आता है आदमी
यह इसलिए होता है
कि अपने लिए जीने से पहले
दूसरों के लिए जीने का
सुख पा लेता है वह
दूसरे के दुख से गुज़र कर
अपने दुख की थाह पा लेता है वह।