भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आने वाले दिनों में क्या होगा.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
  
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
हो न हो ख़ुद से वो मिला होगा
 
हो न हो ख़ुद से वो मिला होगा
  
चाँद जो पल में बन गया मिट्टी
+
चाँद जो पल में बन गया मिट्टी
 
रात दिन किस तरह जला होगा
 
रात दिन किस तरह जला होगा
  

09:16, 9 जून 2010 का अवतरण


किसने जाना कि कल है क्या होगा
कुरबतें या के फ़ासला होगा

आज रोया है वो तो रोने दो
हो न हो ख़ुद से वो मिला होगा

चाँद जो पल में बन गया मिट्टी
रात दिन किस तरह जला होगा

ज़ुल्म करता नहीं वो बन्दों पर
आज दुनिया का रब जुदा होगा

यूँ न ढूँढों यहाँ वफ़ा "श्रद्धा"
तन्हा-तन्हा-सा रास्ता होगा