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"चेतावनी / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

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21:48, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

नकारते नहीं तुम
समर्थन की मुद्रा में
हिलाते हो सिर
जिसका मक़सद
सहमति भी नहीं होता

तुम्हारी भीड़ में
अकेला होता है आदमी
गवाही के ऐन मौके पर
तुम्हारी आँख
हो जाती है पीठ

तुम्हारा एक
से मिलकर
ग्यारह नहीं होता
यह अलग बात है
तुम्हारे एक से निरंतर
तक़्सीम होता है आदमी
सिफ़र नहीं होता

तुम सदैव होते हो वहाँ
जहाँ मिलाया जा सकता है एक हाथ उजाले से
दूसरे हाथ से अँधेरे को आश्वस्त
करवाया जा सकता है ओ भाई समझदार
तुम्हारे हाथों हो रही है पैनी
जिस हथियार की धार
तुमको भी काटेगी
अब की नहीं तो अगली बार

ख़बरदार-ख़बरदार