भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्यों घर में हो / शक्ति चटोपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | बंद पड़े हैं | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=शक्ति चटोपाध्याय | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | |||
+ | <Poem> | ||
+ | बंद पड़े हैं दरवाज़े | ||
सोया हुआ है सारा मुहल्ला | सोया हुआ है सारा मुहल्ला | ||
− | + | सिर्फ़ कभी-कभी सुनाई पड़ती है | |
रात की दस्तक- | रात की दस्तक- | ||
'अवनि' घर में हो ? | 'अवनि' घर में हो ? | ||
− | बारह मास | + | बारह मास यहाँ वर्षा होती है |
बारहों मास यहां उमड़ते-घुमड़ते हैं मेघ | बारहों मास यहां उमड़ते-घुमड़ते हैं मेघ | ||
चरती हुई गाय की तरह | चरती हुई गाय की तरह | ||
गंदी नाली में उगी घास ने | गंदी नाली में उगी घास ने | ||
− | बढ़कर छेंक लिया है समूचे | + | बढ़कर छेंक लिया है समूचे दरवाज़े को- |
'अवनि' घर में हो ? | 'अवनि' घर में हो ? | ||
भरे हुए मन से | भरे हुए मन से | ||
फैले हुए दुखों के बीच | फैले हुए दुखों के बीच | ||
− | मैं सो जाता | + | मैं सो जाता हूँ लगाकर बिस्तर |
− | कि अचानक सुनता | + | कि अचानक सुनता हूँ फिर वही दस्तक- |
'अवनि' घर में हो ? | 'अवनि' घर में हो ? | ||
− | अनुवाद - गिरीश श्रीवास्तव | + | |
+ | '''अनुवाद - गिरीश श्रीवास्तव | ||
+ | </poem> |
15:45, 10 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
बंद पड़े हैं दरवाज़े
सोया हुआ है सारा मुहल्ला
सिर्फ़ कभी-कभी सुनाई पड़ती है
रात की दस्तक-
'अवनि' घर में हो ?
बारह मास यहाँ वर्षा होती है
बारहों मास यहां उमड़ते-घुमड़ते हैं मेघ
चरती हुई गाय की तरह
गंदी नाली में उगी घास ने
बढ़कर छेंक लिया है समूचे दरवाज़े को-
'अवनि' घर में हो ?
भरे हुए मन से
फैले हुए दुखों के बीच
मैं सो जाता हूँ लगाकर बिस्तर
कि अचानक सुनता हूँ फिर वही दस्तक-
'अवनि' घर में हो ?
अनुवाद - गिरीश श्रीवास्तव