भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विरह के दो रंग / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} Category:कविता <poem> सितारों के...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रंजना भाटिया | |रचनाकार=रंजना भाटिया | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
कि | कि | ||
विरह का यह रंग | विरह का यह रंग | ||
− | सिर्फ़ मेरे लिए नही है ... | + | सिर्फ़ मेरे लिए नही है ... |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
सही ग़लत की उलझन में | सही ग़लत की उलझन में | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 24: | ||
जवाब दे जिंदगी | जवाब दे जिंदगी | ||
तू इतनी बेदर्द क्यों है ?.. | तू इतनी बेदर्द क्यों है ?.. | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
19:00, 12 फ़रवरी 2009 का अवतरण
सितारों के बीच में
तन्हा चाँद
और भी उदास कर जाता है
तब शिद्दत से होता है
एहसास ..
कि
विरह का यह रंग
सिर्फ़ मेरे लिए नही है ...
सही ग़लत की उलझन में
बीता जीवन का मधुर पल,
टूटा न जाने कब कैसे
कसमों ,जन्मो का वह नाता
साथ है तो ..दोनों तरफ़
अब सिर्फ़ तन्हाई
जवाब दे जिंदगी
तू इतनी बेदर्द क्यों है ?..