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"पढ़िए गीता / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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पढ़िए गीता
 
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किसी मूर्ख की हो परिणीता
 
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निज घर-बार बसाइये।
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लकड़ी सीली, तबियत ढीली
 
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भरकर भात पसाइये।
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भरकर भात पसाइए ।
 
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20:50, 17 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सब में लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घर-बार बसाइए ।

होंय कँटीली
आँखें गीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइए ।