भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नेकी-बदी / येव्गेनी येव्तुशेंको" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको |संग्रह=धूप खिली थी और रि...)
 
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
और जीवन यह अपना तब
 
और जीवन यह अपना तब
 
निरन्तर सहज गति से चलेगा
 
निरन्तर सहज गति से चलेगा
 +
 +
 +
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
 
</poem>
 
</poem>

20:47, 18 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

बदी को
याद रखने में
मत ख़राब करो समय
भीतर की आज़ादी को यह दिक करता है
बाधा डाले, मन को बाँधे
रुक जाता है हर काम
सहजता में पड़े कठिनाई
मनुष्य रहता है परेशान

नेकी को
रखो तुम याद
मानो इसे प्रभु का प्रसाद
और मित्र-बंधुओं का आशीर्वाद
मैं कहता हूँ
तब काम में मन लगेगा
इधर-उधर कहीं नहीं डिगेगा
और जीवन यह अपना तब
निरन्तर सहज गति से चलेगा


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय