भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
 
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
 
<!----BOX CONTENT STARTS------>
 
<!----BOX CONTENT STARTS------>
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''मांझी ! बजाओ बंशी<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''अब देखिये मेरी कारगुज़ारी<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[केदारनाथ अग्रवाल]]  
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अज्ञेय]]  
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
मांझी ! बजाओ बंशी मेरा मन डोलता
+
अब देखिये मेरी कारगुज़ारी
 
+
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता
+
सवारी पर
 
+
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
जल का जहाज जैसे पल-पल डोलता
+
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
 
+
से किराया
मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता
+
वसूल कर लाया हूँ ।
 
+
थैली वाले को थैली
मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता
+
तोड़े वाले को तोड़ा
 
+
-और घोड़े वाले को घोड़ा
तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता
+
सब को सब का लौटा दिया
 
+
अब मेरे पास यह घमंड है
मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता
+
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।
 
+
मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता
+
 
+
मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।  
+
 
+
 
+
  
 
</pre>
 
</pre>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>

15:00, 25 फ़रवरी 2009 का अवतरण

 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
  रचनाकार: अज्ञेय

अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
सवारी पर
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
से किराया
वसूल कर लाया हूँ ।
थैली वाले को थैली
तोड़े वाले को तोड़ा
-और घोड़े वाले को घोड़ा
सब को सब का लौटा दिया
अब मेरे पास यह घमंड है
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।