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"त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे / रैदास" के अवतरणों में अंतर

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कहै रैदास यहु गोपि नहीं, जानैं सब कोई।।३।।
 
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।। राग रामकली।।

23:02, 18 अगस्त 2006 का अवतरण

कवि: रैदास


त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे, अंतरि ल्यौ लागी।

एक अनूपम अनभई, किम होइ बिभागी।। टेक।।

इक अभिमानी चातृगा, विचरत जग मांहीं।

जदपि जल पूरण मही, कहूं वाँ रुचि नांहीं।।१।।

जैसे कांमीं देखे कांमिनीं, हिरदै सूल उपाई।

कोटि बैद बिधि उचरैं, वाकी बिथा न जाई।।२।।

जो जिहि चाहे सो मिलै, आरत्य गत होई।

कहै रैदास यहु गोपि नहीं, जानैं सब कोई।।३।।

।। राग रामकली।।