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20:58, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
आइए -
इस प्राचीन पर्वत-श्रृंखला के पार
जितनी दूर भी आ सकें आप
रेतीले धोरों में बिखरी बस्तियों के बीच
जहाँ घर में एक घड़ा पानी ही
उसकी पूंजी होता है,
सूरज, चांद और सितारे होते हैं
उजास के आदिम स्रोत -
बिजली सिर्फ़ बादलों में निवास करती है
और पानी पृथ्वी की अतल गहराइयों में मौन
दुर्लभ देवता !
कोई गिले-शिकवे की बात नहीं है
आने को लोग अक्सर आ जाते हैं
तफ़रीह की तर्ज पर और लौट जाते हैं
उस अजनबी सैलानी की तरह
जो नज़ारों की खोज में
भटकता फिरता है आखे जहान में !
उन्हें अपने रिसालों
और बेनूर दीवारों की ख़ातिर
कुछ तस्वीरें लेनी होती हैं नई -
सजानी होती है
अपनी सूनी और बेजान इमारतों की शान,
उन्हें आकर्षित करते हैं
बूंद-बूंद पानी के लिए
तरसती रेत के दुर्लभ दरसाव
और सिर पर घड़ा उठाए
पसीने से तर-बतर
पनिहारिनों का छलकता उल्लास -
उनका तार-तार परिधान !
वे नहीं जान पाते
अपनी नियोजित यात्रा में
रोज़ी और जीवारी के लिए
भटकते इनसान की साँसत -
एक घड़ा पानी के लिए
दूर तक जाती क्षितिज के पार -
आकाश और पाताल को एक करती
घरनी की अन्तर्वेदना !