भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पृथ्वी के कक्ष में / वंशी माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
सूर्य की आत्मा में | सूर्य की आत्मा में | ||
उदित होगा कल | उदित होगा कल | ||
− | पृथ्वी के कक्ष में चलेगी | + | पृथ्वी के कक्ष में चलेगी कक्षा |
कक्षा के बाहर आते ही | कक्षा के बाहर आते ही | ||
आकाश का नहीं रहेगा नामोनिशान। | आकाश का नहीं रहेगा नामोनिशान। | ||
</poem> | </poem> |
13:15, 31 मार्च 2009 का अवतरण
पहले की तरह नहीं होगा पहला
आज की नंगी आँखों में
उदित होती उम्मीद
कल की देह में अस्त हो जाएगी
सूर्य की आत्मा में
उदित होगा कल
पृथ्वी के कक्ष में चलेगी कक्षा
कक्षा के बाहर आते ही
आकाश का नहीं रहेगा नामोनिशान।