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"तुम्हारी आशंसा में / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
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00:06, 2 अप्रैल 2009 का अवतरण
आकाश की हँसी 
तुम्हारे शब्द हैं
वल्लरि पर खिले
नये फूल-सी 
भाषा है 
तुम्हारे नेत्रों के पास 
काया में अपनी 
आकुल दौड़ती 
कितनी नदियों का 
प्रवाह तुम बांधे हो 
फिर भी तुम 
सरल हो इतनी 
जितना धूप की फुहारों से भींगा
शरद का एक दिन !
	
	