"इस तरह मरेंगे हम / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }} <Poem> मोबाइल पर माँ की आवाज आती है ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=लाल्टू | |रचनाकार=लाल्टू | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | < | + | <poem> |
− | मोबाइल पर माँ की | + | मोबाइल पर माँ की आवाज़ आती है कि |
जल्दी कमरे लौट जाओ | जल्दी कमरे लौट जाओ | ||
और हमें पता चलता है कि | और हमें पता चलता है कि |
12:58, 24 मई 2010 के समय का अवतरण
मोबाइल पर माँ की आवाज़ आती है कि
जल्दी कमरे लौट जाओ
और हमें पता चलता है कि
फिर कहीं बम धमाके हुए हैं
हालाँकि सबकी आदत हो चुकी है
धमाकों की ख़बर को दूसरी दीगर ख़बरों के साथ सजाने की
फिर भी जल्दी लौट आते हैं
दोस्तों के साथ बातचीत होती है
बातों मे धमाके पीछे छूट जाते हैं
बात होती है शहर की
शहर में कहाँ कैसी मटरगश्ती की की
शहर कितना अच्छा या बुरा है की
धमाके होते रहेंगे
जैसे बस या ट्रेन दुर्घटनाएँ होती हैं
जैसे लंबे समय तक जहाँ जंग चल रही है
ऐसे इलाकों में होती रहती हैं वारदातें
आदमी को आदत हो जाती है मौत की
जैसे हत्यारों को आदत पड़ जाती है हत्याओं की
माँओं के फोन आऐंगे और हम सुनेंगे
जैसे सुनते हैं रिश्ते मे किसी की शादी की बात
हालाँकि सावधानी की रस्म निभाऐंगे
और जल्दी कमरे लौट जाएँगे
कविता गीत ग़ज़लों का स्वर होगा धीमा
जैसे धमाके और मौत पर अब रोया नहीं जा सकता
जैसे दूसरे दिन अख़बार में आई रोते हुए औरत की तस्वीर
एक बच्चे की तस्वीर जैसी है
जिसका खिलौना टूट गया है
और हँसते हैं हम यह देखते
कि रोता बच्चा कितना सुंदर है
एक दिन हँसेगे हम
पास पड़ी लाशों को देखकर
इस तरह मरेंगे हम